तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में हो रहे विधान परिषद उपचुनाव के लिए जन सुराज के उम्मीदवार डॉ विनायक गौतम ने अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया. मुजफ्फरपुर के क्लब मैदान में जन सुराज की ओर से नामांकन सह आशीर्वाद सभा का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में पार्टी की तैयारियों की पोल खुल गई. इस कार्यक्रम में कुर्सियां खाली रह गईं और प्रशांत किशोर भी नहीं पहुंचे. इससे पहले उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी के अंदर घमासान देखने को मिला था.
अब फिर से पार्टी के अंदर संगठनात्मक ढांचे की कमजोरियों के संकेत देखने मिले. जब तक उम्मीदवार की आधिकारिक घोषणा हुई, तब तक तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं बचा था. इस अव्यवस्था का असर नामांकन कार्यक्रम पर साफ दिखाई दिया, जहां सभा में समर्थनकर्ताओं की कमी देखी गई.
कार्यक्रम स्थल पर अधिकांश कुर्सियां खाली पड़ी थीं, जो जनसुराज पार्टी की हालिया गिरती लोकप्रियता का प्रतीक मानी जा सकती हैं. स्थानीय लोगों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस उम्मीदवार को अपने नामांकन कार्यक्रम में भी समर्थन जुटाने में असफलता मिलती है, वह पार्टी के लिए चुनावी चमत्कार कर पाना मुश्किल है. इस स्थिति ने जन सुराज की राजनीतिक क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. नामांकन के दौरान प्रशांत किशोर की अनुपस्थिति ने कई अटकलों को जन्म दिया.
प्रशांत किशोर, जिन्होंने पहले ‘जन सुराज’ को बिहार में एक राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया था, उनकी गैरमौजूदगी ने समर्थकों के मन में निराशा बढ़ा दी. इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी में सामंजस्य और रणनीतिक दिशा की कमी है. जन सुराज पार्टी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं. समर्थकों का मानना है कि पार्टी में पदों पर ऐसे लोगों को मौका दिया गया है जो सिर्फ ‘रबर स्टैंप’ की तरह काम करते हैं. इस कारण से योग्य और सक्षम नेताओं को पर्याप्त स्थान और अवसर नहीं मिल रहा है, जिससे पार्टी का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो रहा है.
तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र का यह उपचुनाव न सिर्फ उम्मीदवार के राजनीतिक सफर के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जन सुराज पार्टी के भविष्य का भी संकेत देगा. जिस तरह से पार्टी की राजनीतिक पकड़ कमजोर हो रही है, उससे समर्थकों के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है. ऐसे में चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि पार्टी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पा सकेगी या नहीं. जन सुराज का यह चुनावी संघर्ष यह स्पष्ट करता है कि पार्टी को न केवल सामरिक बदलाव की जरूरत है बल्कि इसे संगठनात्मक स्तर पर मजबूती लाने की भी आवश्यकता है. पार्टी की छवि को सुधारने के लिए प्रभावी नेतृत्व और समर्थकों के बीच भरोसा बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.