बिहार की सियासत में बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह का नाम हमेशा चर्चा में रहता है। आगामी विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर उन्होंने एक बार फिर बड़ा बयान देकर राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। आनंद मोहन ने एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग और ‘बड़े भाई–छोटे भाई’ के समीकरण पर खुलकर अपनी राय रखी।
आनंद मोहन का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू और नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका में रहेंगे, जबकि केंद्र की राजनीति में भाजपा अग्रज की भूमिका में रहती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि NDA में सीट शेयरिंग को लेकर कोई तनाव नहीं है। “एक-दो सीट के अंतर को लेकर कभी दिक्कत नहीं होती। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसे सहजता से स्वीकार कर लेते हैं,” उन्होंने कहा।
पूर्व सांसद ने यह भी दोहराया कि सीट शेयरिंग पर अंतिम फैसला ‘पांचों पांडव’ मिलकर लेंगे। उन्होंने महागठबंधन पर तंज कसते हुए कहा कि वहां घमासान और असहमति का माहौल है, जबकि NDA में सब कुछ आपसी सहमति से होता है। “जब पांचों पांडव बैठेंगे तो सीट शेयरिंग पर सहमति बन जाएगी, किसी को कोई परेशानी नहीं होगी,” आनंद मोहन ने कहा।
महागठबंधन पर तीखा हमला
आनंद मोहन ने महागठबंधन के अंदर चल रहे विरोधाभास पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि “एक नेता ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाल रहे हैं तो दूसरा ‘बिहार अधिकार यात्रा’ पर निकला है। वहीं यह वही लोग हैं जो ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा लगाते हैं, लेकिन उनके शासन में बूथ लूट की घटनाएं आम थीं। 1999 का चुनाव तो मैं खुद गवाह हूं, मुझे सिर्फ 917 वोट से हराया गया था,” उन्होंने कहा।
उन्होंने महागठबंधन की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहां नेतृत्व को लेकर भ्रम और आपसी अविश्वास है, जबकि NDA में ऐसी स्थिति नहीं है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में सब कुछ सहमति से होता है।
शिवहर सीट पर “नो वैकेंसी”
शिवहर सीट पर चेतन आनंद की दावेदारी को लेकर पूछे गए सवाल पर आनंद मोहन ने दो टूक कहा, “शिवहर में कोई वैकेंसी नहीं है, मैं पहले भी यह कह चुका हूं।” उन्होंने संकेत दिया कि चेतन आनंद ही शिवहर का प्रतिनिधित्व जारी रखेंगे।
उन्होंने कहा, “कुछ नेता तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं, लेकिन सभी को अपने दामन में झांकना चाहिए कि पिछले चुनाव में उनकी क्या भूमिका थी। सरकार बचाने में भी चेतन आनंद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।”
जेडीयू–भाजपा का ‘बड़े भाई–छोटे भाई’ समीकरण
आनंद मोहन के बयान से यह स्पष्ट हो गया कि बिहार में जेडीयू को बड़े भाई के तौर पर ही रहना चाहिए। उन्होंने कहा, “केंद्र में भाजपा की जरूरत और मजबूती है, इसलिए नीतीश जी हमेशा उदारता दिखाते आए हैं। एक-दो सीटों का मामला होता है, ज्यादा का नहीं। NDA में सब कुछ सहजता और आपसी समझ के साथ होता है।”
इस बयान से उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि NDA में कोई बड़ा विवाद नहीं है और विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग का मुद्दा सहमति से हल हो जाएगा।
आनंद मोहन: कौन हैं और क्यों हैं चर्चा में
आनंद मोहन सिंह बिहार की राजनीति का एक जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा। 1990 में पहली बार सहरसा जिले की महिषी विधानसभा सीट से विधायक बने और 1996 में शिवहर से लोकसभा सांसद चुने गए।
हालांकि उनका नाम 1994 में तत्कालीन गोपालगंज डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में सामने आया, जिसके लिए उन्हें उम्रकैद की सजा हुई। अप्रैल 2023 में उनकी रिहाई हुई।
फिलहाल उनकी पत्नी लवली आनंद शिवहर से सांसद हैं और बेटे चेतन आनंद शिवहर से विधायक हैं। 71 वर्षीय आनंद मोहन कानूनी अड़चनों के कारण खुद चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन उनकी राजनीतिक पकड़ अब भी मजबूत है।
क्यों अहम है आनंद मोहन का बयान
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले NDA के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर सियासी अटकलें तेज हैं। विपक्ष महागठबंधन में घमासान जारी है, वहीं NDA के भीतर सबकुछ ‘ठीक’ दिखाने के लिए आनंद मोहन का बयान अहम माना जा रहा है।
उनका यह बयान न केवल NDA कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाता है बल्कि यह संदेश भी देता है कि सीट बंटवारे में कोई बड़ा विवाद नहीं होगा। उनके शब्दों में, “जब पांचों पांडव बैठेंगे, सीट शेयरिंग पर फैसला हो जाएगा।”
निष्कर्ष
आनंद मोहन सिंह का यह बयान बिहार की सियासत में NDA की एकजुटता और महागठबंधन की अंदरूनी कलह दोनों को उजागर करता है। जहां NDA में ‘बड़े भाई’ की भूमिका को लेकर स्पष्टता है, वहीं महागठबंधन में नेतृत्व और रणनीति को लेकर असमंजस नजर आता है।
पूर्व सांसद का कहना है कि नीतीश कुमार और जेडीयू विधानसभा चुनाव में NDA का नेतृत्व करेंगे, जबकि केंद्र में भाजपा अग्रज की भूमिका में रहेगी। उनके अनुसार, NDA के ‘पांच पांडव’ मिलकर सीट शेयरिंग पर फैसला करेंगे और किसी को कोई परेशानी नहीं होगी।
इस बयान से चुनावी राजनीति में NDA को बढ़त का संदेश मिलता है और साथ ही यह भी दिखाता है कि आनंद मोहन सिंह अब भी बिहार की सियासत में एक मजबूत ‘किंगमेकर’ की भूमिका में हैं।
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