सावनसावन


सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और आराधना के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समय प्रकृति, अध्यात्म और संयम का प्रतीक होता है। भक्तजन इस महीने में व्रत रखते हैं, शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं और अनेक चीजों का त्याग कर देते हैं। इस दौरान लोग खास तौर पर मांस-मदिरा से दूर रहते हैं, नशे से परहेज करते हैं और हरी पत्तेदार सब्जियों तक का सेवन बंद कर देते हैं। मगर इन सबके बीच एक विशेष परंपरा जो अधिकतर लोग मानते हैं, वह है सावन के महीने में बाल और दाढ़ी न कटवाना।

सावन
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धार्मिक ग्रंथों और पुरानी मान्यताओं के अनुसार, सावन के महीने में बाल और दाढ़ी कटवाने को अशुभ माना गया है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति सावन में व्रत करता है और शिव भक्ति में लीन रहता है, तो उसे शरीर की सज्जा से जुड़े कार्यों, जैसे कि बाल कटवाना, दाढ़ी बनवाना, नाखून काटना या शरीर की मालिश करना, इन सबसे बचना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों से व्यक्ति की साधना और पूजा भंग हो सकती है और उसका असर उसके जीवन पर पड़ सकता है। शास्त्रों में भी बताया गया है कि इस प्रकार के कर्म करने से ‘ग्रह दोष’ उत्पन्न हो सकता है, जिससे मानसिक तनाव, अस्वस्थता और घर में कलह जैसी स्थिति बन सकती है। शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि व्रत और तपस्या के समय शरीर को जितना हो सके शुद्ध और साधारण रखा जाए।


जहां एक ओर धार्मिक कारणों से लोग इस परंपरा को मानते हैं, वहीं इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी काफी तर्कसंगत है। प्राचीन काल में आज की तरह सुविधाजनक और सुरक्षित हेयर कटिंग या शेविंग उपकरण उपलब्ध नहीं थे। उस समय लोग तेज धार वाले लोहे के औजारों का उपयोग करते थे, जिससे जरा सी चूक पर चोट लग सकती थी।

सावन का महीना वैसे भी वर्षा ऋतु का समय होता है। इस दौरान वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है। अगर किसी व्यक्ति को कट लग जाता, तो उसमें बैक्टीरियल या फंगल इन्फेक्शन होना आम बात थी। बारिश के कारण घाव जल्दी नहीं सूखते थे और उपचार के साधन भी सीमित थे। इसी कारण लोगों ने सावन के महीने में बाल और दाढ़ी कटवाने से परहेज करना शुरू कर दिया।

धीरे-धीरे यह स्वास्थ्य सुरक्षा का कदम धार्मिक रूप ले बैठा और अब यह परंपरा के रूप में हर वर्ष पालन की जाती है।

सिर्फ बाल और दाढ़ी ही नहीं, बल्कि इस महीने में नाखून काटने और शरीर पर तेल मालिश करने की भी मनाही मानी जाती है। धार्मिक मान्यता कहती है कि शरीर पर बार-बार तेल लगाना सांसारिक सुखों की ओर झुकाव दर्शाता है, जबकि व्रत और पूजा का समय आत्म-संयम और साधना का होता है। वहीं नाखून काटने से चोट लगने की आशंका बनी रहती है, और सावन में भीगे वातावरण के कारण संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है।



सावन का महीना न सिर्फ धार्मिक रूप से पवित्र है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी यह स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष सतर्कता बरतने का समय है। बाल, दाढ़ी, नाखून जैसे शरीर से जुड़े कार्यों में थोड़ी सावधानी रखना न केवल आपकी साधना को भंग होने से बचाता है, बल्कि आपके स्वास्थ्य की रक्षा भी करता है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि परंपराएं केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि जीवन को स्वस्थ और संतुलित बनाए रखने का एक माध्यम भी हैं।

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