सहरसा में लगातार हो रही बारिश ने नगर निगम की पोल खोल दी है। शहर के लगभग हर मोहल्ले और वार्ड में जलजमाव की स्थिति गंभीर बनी हुई है। सड़कों पर घुटनों तक पानी जमा है, नालों से बदबूदार पानी उफान मार रहा है और घरों में पानी घुस जाने से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। नगर निगम की लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोप एक बार फिर सामने आने लगे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि हर साल निगम करोड़ों रुपये जल निकासी व्यवस्था सुधारने के नाम पर खर्च दिखाता है, लेकिन हालात पहले से भी बदतर होते जा रहे हैं। वर्ष 2025 में नगर निगम द्वारा तीस वार्डों में नाला निर्माण पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च दिखाया गया, जबकि हकीकत यह है कि अधिकांश नालों की स्थिति दयनीय है। कई जगह निर्माण अधूरा है, तो कहीं नालों की लेवलिंग तक नहीं की गई।
इसी तरह, वूडकौ (WUDCO) परियोजना के तहत 80 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च की गई, परन्तु लोगों का कहना है कि इसका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। पानी निकासी की बजाय कई जगह तो हालात और बिगड़ गए हैं। मोहल्लों में जलभराव इतना बढ़ गया है कि जिन घरों में पहले कभी पानी नहीं घुसा था, अब वहां भी लोग पानी में रहने को मजबूर हैं।
स्थानीय नागरिक बंधन बर्मा ने निगम पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि नगर निगम केवल “हेमोक्रेट” कर जनता को भ्रमित करता है। काम के नाम पर शून्य उपलब्धि है और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। उन्होंने कहा कि जनता के टैक्स का पैसा अधिकारी और जनप्रतिनिधि मिलकर बंदरबांट कर रहे हैं। बंधन बर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि नालों की सफाई, जल निकासी और सड़क मरम्मत जैसे कार्य केवल कागज़ों पर पूरे दिखाए जाते हैं।
शहर के कई वार्डों में हालात इतने गंभीर हैं कि लोग घर से बाहर निकल भी नहीं पा रहे। बारिश थमने के बाद भी पानी निकलने में दो-दो दिन लग जाते हैं। दुकानदारों का कारोबार ठप है, बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे और लोग मच्छरों व गंदगी से परेशान हैं।
स्थानीय निवासियों ने सवाल उठाया है कि जब हर साल करोड़ों रुपये जल निकासी योजना के नाम पर खर्च होते हैं, तो फिर शहर में हर बार बारिश के साथ बाढ़ जैसी स्थिति क्यों बन जाती है? कई नागरिकों ने नगर निगम पर आरोप लगाया कि टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है, और ठेकेदारों से सांठगांठ कर घटिया गुणवत्ता का काम कराया जाता है।
निवासी मीना देवी ने कहा कि “हमारे घर में पहली बार पानी घुस गया। रसोई और आंगन दोनों जगह घुटनों तक पानी है। निगम को कई बार फोन किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली।” वहीं, वार्ड नंबर 22 के निवासी शिवकुमार साह का कहना है कि “नालों की सफाई सिर्फ कागज़ों पर होती है। अधिकारी आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और चले जाते हैं।”
लोगों का आक्रोश अब सड़कों पर भी दिखने लगा है। कई इलाकों में नागरिकों ने नगर निगम के खिलाफ प्रदर्शन की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि जनता के पैसों से सुख-सुविधा भोगने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को अब जवाब देना ही होगा।
वहीं, नगर आयुक्त प्रभात कुमार झा से इस बारे में संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका फोन स्विच ऑफ मिला।
निवासियों का कहना है कि जब तक नगर निगम में जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, तब तक सहरसा हर बारिश में डूबता ही रहेगा।
सहरसा की यह स्थिति इस बात का सबूत है कि योजनाओं और फाइलों में दर्ज विकास का दावा जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है। जनता अब यह सवाल पूछ रही है — अगर 180 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी शहर पानी में डूबा है, तो आखिर यह पैसा गया कहाँ?
