सहरसा जिले में शारदीय नवरात्रि का समापन हर्ष और भावुकता के बीच सम्पन्न हुआ। मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन जिलेभर में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया। आमतौर पर प्रतिमा विसर्जन दशमी के दिन ही होता है, लेकिन इस बार विशेष परिस्थितियों और भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए आयोजन को एक दिन आगे बढ़ाया गया। इसके चलते आज पूरे जिले में माहौल भक्तिमय और भावुक दोनों ही नजर आया।
सुबह से ही पंडालों में मां की अंतिम पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हुईं मां की आराधना कर रही थीं, वहीं युवा ढोल-नगाड़ों की थाप पर उत्साह के साथ मां को विदाई देने पहुंचे। जैसे ही प्रतिमाओं को विसर्जन यात्रा के लिए पंडालों से बाहर लाया गया, भक्तों की आंखें नम हो उठीं। “अगले बरस तू जल्दी आ मां” के जयकारों और भक्ति गीतों के बीच लोग भावुक होकर देवी को विदा करते नजर आए।
पूरे जिले में बनाए गए भव्य पंडालों ने इस बार भी आकर्षण का केंद्र बनाया। अलग-अलग थीम और शानदार सजावट के बीच मां दुर्गा की प्रतिमा की भव्यता देखते ही बनती थी। पूजा-अर्चना, आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोगों की भारी भागीदारी ने उत्सव को जीवंत बना दिया। लेकिन विदाई के समय हर ओर उदासी और मां के पुनः आगमन की कामना देखने को मिली।
इस अवसर पर प्रशासन की तैयारी और सतर्कता भी चर्चा का विषय बनी रही। पूजा पंडालों से लेकर विसर्जन स्थलों तक पुलिस बल की तैनाती की गई थी। जिला प्रशासन और पुलिस विभाग की कड़ी निगरानी में पूरा आयोजन शांति और अनुशासन के साथ सम्पन्न हुआ। विशेषकर एसपी हिमांशु कुमार के नेतृत्व और उनकी सशक्त पुलिसिंग की लोगों ने खुलकर सराहना की। जगह-जगह मौजूद पुलिसकर्मियों ने विसर्जन यात्रा को सुरक्षित और व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराया।
सहरसा की गंगा-जमुनी तहजीब एक बार फिर इस उत्सव में झलकती नजर आई। हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के लोग एक-दूसरे का सहयोग करते दिखे। कई जगहों पर मुस्लिम समाज के युवाओं ने भी विसर्जन यात्रा में पानी और शरबत की व्यवस्था की, जिससे भाईचारे और सामाजिक सौहार्द का उदाहरण सामने आया।
पूरे आयोजन में सहयोगी कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों की सक्रियता भी प्रशंसा के योग्य रही। लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने, श्रद्धालुओं की सुविधा और साफ-सफाई के इंतजाम में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अंततः मां दुर्गा की विदाई जिलेभर में धार्मिक आस्था और सामाजिक एकजुटता का संदेश देते हुए सम्पन्न हुई। शहरवासियों ने एक स्वर में कामना की कि मां दुर्गा अगले वर्ष और भी भव्य स्वरूप में पधारें और सभी को सुख, शांति व समृद्धि का आशीर्वाद दें।
इस प्रकार सहरसा का दुर्गोत्सव केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि आपसी भाईचारे, प्रशासनिक सतर्कता और सांस्कृतिक एकजुटता का भी शानदार उदाहरण बन गया।
