बिहार के बांका जिले से एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। यहां शिक्षा विभाग और निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (Vigilance) ने फर्जी सर्टिफिकेट मामले में चार साल पहले मृत हो चुके शिक्षक के खिलाफ केस दर्ज कर दिया। इस घटना ने पूरे इलाके में चर्चा छेड़ दी है।

4 साल पहले हुई थी मौत

मिर्जापुर पंचायत के सोनडीहा निवासी शिक्षक निरंजन कुमार, जो प्राथमिक विद्यालय मेहरपुर में पदस्थापित थे, उनकी मौत साल 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान हो गई थी। उनकी मृत्यु का प्रमाण पत्र परिवार द्वारा शिक्षा विभाग को तत्काल जमा भी कर दिया गया था। इसके बावजूद, हाल ही में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने उनके खिलाफ फर्जी सर्टिफिकेट मामले में केस दर्ज कर दिया।

जांच में निकला फर्जी सर्टिफिकेट

निरंजन कुमार लंबे समय तक शिक्षा विभाग की प्रमाण पत्र जांच में बचते रहे। जब मामले की जिम्मेदारी निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को मिली तो जांच में उनका सर्टिफिकेट फर्जी पाया गया। लेकिन चूक यह रही कि विभाग और निगरानी दोनों को उनकी 2021 में हुई मौत की जानकारी नहीं मिली, और मृतक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई।

महिला शिक्षिका भी फर्जीवाड़े में फंसी

इसी जांच में प्राथमिक विद्यालय जगतापुर की शिक्षिका पल्लवी कुमारी का प्रमाण पत्र भी फर्जी पाया गया। पल्लवी वर्ष 2018 से ही लापता बताई जा रही हैं। उनके खिलाफ भी केस दर्ज किया गया, लेकिन मृतक शिक्षक पर कार्रवाई ने पूरे मामले को विवादों में डाल दिया।

परिजनों में गुस्सा

मृत शिक्षक के छोटे भाई मनीष कुमार ने बताया:
“2021 में मेरे बड़े भाई निरंजन कुमार की कोरोना से मौत हो गई थी। इसके बावजूद, निगरानी ब्यूरो ने उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया है।”

परिवार का कहना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र शिक्षा विभाग से लेकर जिला कार्यालय तक जमा कराया गया था, फिर भी यह गलती हुई। इस घटना ने परिवार को गहरा मानसिक आघात पहुंचाया है।

शिक्षक संघ में नाराजगी

यह मामला स्थानीय शिक्षक संघ में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। शिक्षकों का कहना है कि विभाग और निगरानी टीम की लापरवाही ने पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई लोगों ने मांग की है कि इस तरह की चूक रोकने के लिए बेहतर समन्वय और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए।

पुलिस ने कहा- जांच होगी

थानाध्यक्ष मंटू कुमार ने बताया कि परिजनों ने शुक्रवार को मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया है। इसकी सूचना जिला प्रशासन को दी जाएगी और मामले की जांच की जाएगी। साथ ही, निगरानी और शिक्षा विभाग की लापरवाही पर भी जवाबदेही तय की जाएगी।

यह घटना साफ करती है कि फर्जी सर्टिफिकेट की जांच जितनी ज़रूरी है, उतना ही जरूरी है कि प्रशासन और विभागों के बीच समन्वय और डेटा अपडेट में चूक न हो, वरना ऐसी गलतियां परिवारों के लिए त्रासदी बन सकती हैं।

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