पंचायत

गोपालपुर (भागलपुर)। प्रखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत सैदपुर में निर्माणाधीन पंचायत सरकार भवन अब विवादों के घेरे में आ गया है। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों ने आरोप लगाया है कि जिस स्थान पर यह भवन बनाया जा रहा है, वह सैदपुर पंचायत की अधिकृत सीमा से बाहर है। निर्माण कार्य ग्राम पंचायत तिनटंगा करारी के क्षेत्र में करवाया जा रहा है, जो न सिर्फ गलत है बल्कि भौगोलिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी खतरनाक साबित हो सकता है।

सरकार

जलजमाव और कटाव से ग्रसित क्षेत्र

बताया जा रहा है कि यह क्षेत्र हर साल बाढ़ की चपेट में आता है और पानी का स्तर 10 से 12 फीट तक पहुंच जाता है। जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता द्वारा इस स्थान को पूर्व में रेड जोन घोषित किया जा चुका है, जो इसे निर्माण कार्यों के लिए अत्यधिक जोखिमपूर्ण बनाता है। क्षेत्र की मिट्टी अत्यधिक कटावग्रस्त भी मानी जाती है, जिससे भविष्य में भवन की स्थायित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है।

जमीन पर स्वामित्व को लेकर उठे सवाल

स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया है कि जिस जमीन पर भवन निर्माण हो रहा है, वह भले ही बिहार सरकार की घोषित की गई हो, परंतु वह सैदपुर पंचायत के परिसीमन क्षेत्र से बाहर है। यह जमीन दरअसल तिनटंगा करारी पंचायत के अंतर्गत आती है। इससे न केवल प्रशासनिक उलझनें उत्पन्न हो रही हैं, बल्कि पंचायत स्तर पर अधिकारों और संसाधनों को लेकर भी असमंजस की स्थिति बन गई है।

मुखिया ने की शिकायत

सैदपुर पंचायत की मुखिया वीणा देवी ने इस गंभीर मामले को लेकर मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, भूराजस्व मंत्री और जिलाधिकारी को लिखित शिकायत भेजी है। उन्होंने आवेदन में मांग की है कि निर्माण कार्य को तत्काल रोका जाए और पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। मुखिया ने यह भी कहा कि सैदपुर पंचायत के विकासात्मक कार्यों के लिए भवन की जरूरत वर्षों से थी, परन्तु इसे पंचायत सीमा से बाहर बनाना न सिर्फ अन्याय है, बल्कि सरकारी नियमों की भी अनदेखी है।

ग्रामीणों में रोष

इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सैदपुर पंचायत के ग्रामीणों में भारी नाराजगी देखी जा रही है। लोगों का कहना है कि सरकारी सुविधाओं और विकास के नाम पर उन्हें छला जा रहा है। वे चाहते हैं कि निर्माण कार्य उनकी पंचायत की अधिकृत सीमा के भीतर ही हो, ताकि भविष्य में सुविधाओं का सही लाभ स्थानीय लोगों को मिल सके।

प्रशासन मौन

फिलहाल प्रशासन की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन लगातार बढ़ते विरोध और शिकायतों के बाद उम्मीद की जा रही है कि जिला प्रशासन जल्द कोई संज्ञान लेगा और निष्पक्ष जांच कर उचित निर्णय लिया जाएगा।

निष्कर्षतः, यह मामला न सिर्फ तकनीकी लापरवाही का प्रतीक बन गया है, बल्कि ग्रामीण विकास योजनाओं में पारदर्शिता और भौगोलिक संतुलन की अनिवार्यता को भी रेखांकित करता है।

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