नई दिल्ली से आई एक चौंकाने वाली खबर ने देशभर में सुर्खियां बटोर ली हैं। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उस समय एक नाटकीय स्थिति बन गई जब एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर हमला करने की कोशिश की और उनकी ओर जूता फेंका। घटना के बाद कुछ क्षणों के लिए कोर्ट रूम में अफरातफरी मच गई, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की तत्परता से स्थिति तुरंत काबू में कर ली गई।
यह घटना उस वक्त हुई जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामलों का उल्लेख किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि आरोपी वकील अचानक मंच की ओर बढ़ा और जूता फेंकने की कोशिश की। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत उसे पकड़ लिया और कोर्ट रूम से बाहर ले गए।
घटना से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इस वकील की पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है। जैसे ही उसे सुरक्षा कर्मी बाहर लेकर जा रहे थे, वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे!” इस नारे के साथ वह कोर्ट परिसर में हंगामा करता रहा।
🔹 मुख्य न्यायाधीश ने दिखाई शांति और संयम
इस अचानक हुई घटना के बाद भी CJI बी.आर. गवई पूरी तरह शांत और संयमित नजर आए। उन्होंने कोर्ट रूम में मौजूद अन्य वकीलों और कर्मचारियों से कहा—
> “इस सब से विचलित न हों। हम विचलित नहीं हैं। ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।”
उन्होंने कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया और मामले का संज्ञान लेते हुए किसी प्रकार की अफरातफरी को रोक दिया।
🔹 घटना की पृष्ठभूमि: भगवान विष्णु की मूर्ति पर अदालत की टिप्पणी
इस घटना की जड़ें दरअसल 18 सितंबर की सुनवाई से जुड़ी मानी जा रही हैं। उस दिन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति के पुनर्निर्माण से संबंधित एक याचिका पर टिप्पणी की थी।
याचिका राकेश दलाल नामक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि खजुराहो के यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के अंतर्गत आने वाले जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची मूर्ति का सिर मुगल काल के आक्रमणों में क्षतिग्रस्त हो गया था। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि मूर्ति का पुनर्निर्माण और पुनः स्थापना की जाए।
हालांकि, CJI गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह मामला “पूरी तरह विवादास्पद” है।
इसके बाद सोशल मीडिया पर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ कुछ लोगों ने तीखी आलोचना शुरू कर दी थी। अदालत के भीतर हुई आज की घटना को इसी विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है।
🔹 “हर एक्शन का समान रीएक्शन नहीं, सोशल मीडिया पर असमान रिएक्शन”
18 सितंबर की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस विवाद पर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था,
> “हम न्यूटन का नियम जानते हैं कि हर एक्शन का समान रीएक्शन होता है, लेकिन अब हर एक्शन का सोशल मीडिया पर असमान रिएक्शन होता है।”
मेहता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उन्होंने देशभर के धार्मिक स्थलों का दौरा किया है।
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी प्रतिक्रिया दी थी,
> “हम हर दिन कष्ट झेलते हैं। यह एक बेलगाम घोड़ा है, सोशल मीडिया को काबू में करने का कोई तरीका नहीं है।”
🔹 आरोपी वकील का क्या था मकसद?
प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, आरोपी वकील राकेश किशोर हाल ही में अदालत में उस याचिकाकर्ता के पक्ष में बोलते नजर आए थे, जिसकी याचिका खारिज की गई थी। माना जा रहा है कि जावरी मंदिर में मूर्ति पुनर्निर्माण से जुड़ी अदालत की टिप्पणी से वह नाराज था।
जब सोमवार को मामलों का उल्लेख चल रहा था, तब वह अचानक उग्र हो उठा और मंच की ओर बढ़ गया। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार उसने पहले कुछ अपशब्द कहे और फिर जूता फेंकने की कोशिश की, जो मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचा नहीं।
सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत उसे काबू में कर कोर्ट रूम से बाहर कर दिया। बाद में उसे सुप्रीम कोर्ट सुरक्षा टीम ने हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू की।
🔹 सुप्रीम कोर्ट में सुरक्षा बढ़ाई गई
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में सुरक्षा और सख्त कर दी गई है। कोर्ट प्रशासन ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को बिना जांच के कोर्ट रूम में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।
कानूनी समुदाय ने इस घटना की निंदा की है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा,
> “यह हमारे न्यायालय की गरिमा पर हमला है। असहमति जताने का अधिकार है, लेकिन हिंसक व्यवहार या हमला करना लोकतंत्र के खिलाफ है।”
न्यायपालिका के सम्मान की अपील
मुख्य न्यायाधीश गवई ने भी कोर्ट रूम में हुई इस घटना को लेकर किसी तरह की सख्त प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि सभी से संयम बरतने की अपील की। उन्होंने कहा,
> “हम सबका कर्तव्य है कि न्यायपालिका की गरिमा और शांति को बनाए रखें।”
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की यह घटना न्यायिक इतिहास के लिए दुर्भाग्यपूर्ण कही जा रही है। यह न सिर्फ कोर्ट की गरिमा पर हमला है बल्कि कानून के शासन पर भी सवाल खड़े करती है। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने जिस संयम और शांति से इस स्थिति को संभाला, वह लोकतंत्र में न्यायपालिका की गरिमा और सहिष्णुता का एक उदाहरण बन गया है।
