भागलपुर जिले के रंगरा प्रखंड के चापर गांव का नाम आज पूरे देश में शौर्य और बलिदान के प्रतीक के रूप में लिया जा रहा है। यहां के लाल, 35 वर्षीय जवान अंकित यादव ने दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहादत ने एक ओर जहां पूरे गांव और जिले को गर्व से भर दिया है, वहीं दूसरी ओर परिवार के आंखों में आंसू और दिलों में गहरा दर्द छोड़ गया है।
अंकित यादव दुश्मनों की गोलियों से छलनी होने के बावजूद अंत तक वीरता से लड़ते रहे। बताया जाता है कि उन्हें सात गोलियां लगी थीं, फिर भी वे अपने मोर्चे पर डटे रहे। अंतिम गोली उनके ललाट पर लगी और वे धराशायी हो गए। अपनी जान की परवाह किए बिना, उन्होंने घुसपैठियों को रोकने में सफलता पाई और देश की सरहद को सुरक्षित रखा। सेना ने उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचाया, लेकिन चिकित्सकों ने जांच के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया।
भाई मिथलेश कुमार का दर्द और आक्रोश
शहीद अंकित के भाई मिथलेश कुमार का कहना है कि यदि भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान को कड़ा जवाब दिया होता तो आज ऐसी कायराना घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होती। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को अब और कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि दुश्मन राष्ट्र की ऐसी हरकतों को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सके। मिथलेश का आक्रोश इस बात पर भी है कि सैनिकों को हमेशा मजबूती और सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि उनके बलिदान को टाला जा सके।
पत्नी रूबी देवी की पीड़ा और गर्व
शहीद अंकित की पत्नी रूबी देवी ने भावुक होते हुए बताया कि वे अक्सर वीडियो कॉल पर बात करते थे। बातचीत के दौरान कई बार अंकित जंगल में अकेले दिखाई देते थे। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि यदि सरकार सैनिकों के लिए बेहतर व्यवस्था करती, तो संभवतः उनके पति को इतनी जल्दी शहादत नहीं देनी पड़ती। हालांकि गम और पीड़ा के बीच उन्होंने गर्व के साथ कहा – “हमें अपने पति की शहादत पर गर्व है। उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर किए हैं।”
शिक्षक की यादें
गांव के शिक्षक मणिकांत ठाकुर ने अंकित यादव को याद करते हुए कहा कि उन्होंने उन्हें सातवीं-आठवीं कक्षा में ट्यूशन पढ़ाया था। अंकित हमेशा जिज्ञासु और सीखने की ललक रखने वाले विद्यार्थी थे। नई-नई बातें जानने की उनमें विशेष रुचि थी। वे गलत के विरोध में हमेशा खड़े रहते थे। शिक्षक ने गर्व से कहा कि आज अंकित की शहादत के कारण पूरे देश में गांव का नाम लिया जा रहा है।
गांव में मातम और गर्व
अंकित यादव की शहादत से पूरा गांव गमगीन है। घर-घर में शोक का माहौल है, लेकिन साथ ही हर कोई गर्व से कह रहा है कि उनके गांव का बेटा देश के लिए शहीद हुआ है। बच्चे-बच्चे के मुंह से ‘जय हिंद’ और ‘अंकित यादव अमर रहें’ के नारे गूंज रहे हैं।
निष्कर्ष
शहीद अंकित यादव की वीरता और बलिदान भारतीय सेना की उस परंपरा का उदाहरण है, जिसमें सैनिक अपने देश और जनता की सुरक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटते। उनका बलिदान देशवासियों के लिए प्रेरणा है और सरकार के लिए चेतावनी कि सैनिकों की सुरक्षा और सुविधा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अंकित ने न केवल घुसपैठ को नाकाम किया बल्कि अपने खून से देश की सरहद को सींच दिया। सचमुच,
“शहीद कभी मरते नहीं, वे हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहते हैं।
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