राजस्थान के झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से आई एक चौंकाने वाली खबर ने विकास के सरकारी दावों की पोल खोल दी है। यहां रेखा नाम की महिला को प्रसव पीड़ा के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया। परिवार ने डॉक्टरों को बताया कि यह उनकी चौथी संतान है। लेकिन जांच और जानकारी के बाद सामने आया कि यह दरअसल उनकी 17वीं संतान है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रोशन दरांगी ने पुष्टि करते हुए कहा कि अब महिला और उसके परिवार को नसबंदी व परिवार नियोजन के बारे में जागरूक किया जाएगा।
हैरान करने वाली सच्चाई
21वीं सदी में जब देश डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और विकसित भारत की राह पर चल रहा है, तब आदिवासी बहुल इलाकों से आने वाली इस तरह की घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं। एक ओर सरकारें महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण महिलाएं लगातार मातृत्व का बोझ झेल रही हैं।
गरीबी और अशिक्षा का असर
झाड़ोल जैसे इलाकों में आज भी गरीबी, अशिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। स्वास्थ्य केंद्र तो मौजूद हैं, लेकिन वहां तक लोगों की पहुँच और उनकी सोच में बदलाव अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। परिवार नियोजन जैसे विषय पर न तो खुले तौर पर बातचीत होती है और न ही महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हो पाती हैं। यही कारण है कि आज भी कई महिलाएं लगातार गर्भधारण करने को मजबूर हैं।
विकास बनाम हकीकत
कागजों पर भले ही विकास की रफ्तार तेज दिखाई देती हो, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति उतनी बदलती नहीं दिख रही। जब तक शिक्षा हर घर तक नहीं पहुँचेगी और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक ऐसी घटनाएं सामने आती रहेंगी।
स्वास्थ्य विभाग की चुनौती
अब स्वास्थ्य विभाग ने महिला को जागरूक करने और परिवार नियोजन अपनाने की दिशा में कदम उठाने की बात कही है। लेकिन सवाल यही है कि क्या सिर्फ एक परिवार को जागरूक करने से समस्या हल होगी? जरूरत है सामूहिक प्रयासों की, जिसमें प्रशासन, समाज और परिवार सबकी भूमिका हो।
निष्कर्ष
रेखा के 17वें प्रसव की यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या विकास के दावे सिर्फ शहरी इलाकों तक सीमित हैं? क्या सरकार की योजनाएं उन तक पहुँच पा रही हैं, जिनके लिए बनाई जाती हैं? यह केवल एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि देश के उन हिस्सों की सच्चाई है जहां आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की रौशनी नहीं पहुँच पाई है।
👉 असली विकास तभी संभव होगा जब गांव, आदिवासी क्षेत्र और पिछड़े इलाकों में रहने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवार नियोजन के अधिकार मिलेंगे। वरना आंकड़ों में विकास दिखेगा, लेकिन हकीकत में नहीं।
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