कभी स्लम बस्तियों की तंग गलियों में घूम-घूमकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने वाला एक साधारण युवक, आज पूरे देश के लिए एक मिसाल बन चुका है। बात हो रही है बिहार के गया जिले के एक छोटे से गांव खुखड़ी के रहने वाले शैलेंद्र कुमार की, जिन्होंने समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मेहनत और समर्पण से वो कर दिखाया, जो करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है।
शैलेंद्र कुमार का सफर बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से शुरू हुआ। उनके पिता एक छोटे दुकानदार हैं और परिवार मध्यम वर्गीय है। लेकिन शैलेंद्र के भीतर कुछ बड़ा करने का जुनून शुरू से था। गांव की जर्जर शिक्षा व्यवस्था, बच्चों की स्कूल से दूरी, और सामाजिक कुरीतियों को देखकर उन्होंने बदलाव की ठानी। यही जज्बा उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार तक ले गया।
### एनएसएस से जुड़ाव ने बदली दिशा
शैलेंद्र कुमार ने मैट्रिक पास करने के बाद जगजीवन कॉलेज में दाखिला लिया। यहां उन्हें राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के बारे में पता चला। उन्होंने देखा कि छात्र कॉलेज में झाड़ू लगा रहे हैं, समारोहों का नेतृत्व कर रहे हैं। जब उन्होंने अपने शिक्षक से पूछा तो पता चला कि ये सभी छात्र एनएसएस से जुड़े हैं — एक ऐसा कार्यक्रम जो भारत सरकार के युवा एवं खेल मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है।
बस यहीं से शैलेंद्र का जीवन बदल गया। उन्होंने भी एनएसएस ज्वाइन कर लिया और शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, नशा मुक्ति, प्रौढ़ शिक्षा, रक्तदान जैसे कई सामाजिक क्षेत्रों में काम करना शुरू किया। स्लम बस्तियों में जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करना, पौधारोपण करना, कोरोना काल में लोगों तक सैनिटाइज़र और मास्क पहुंचाना — शैलेंद्र हर उस जगह पहुँचे जहाँ जरूरत थी।
### राष्ट्रपति सम्मान: एक ऐतिहासिक उपलब्धि
अपने बेहतरीन कार्यों के लिए शैलेंद्र कुमार को 24 सितंबर 2022 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों एनएसएस का सर्वोच्च पुरस्कार मिला। यह सम्मान देशभर के 40 लाख एनएसएस वॉलंटियर्स में से केवल 30 को मिला था और उनमें से एक नाम था गया के शैलेंद्र कुमार का।
राष्ट्रपति पुरस्कार पाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसके पीछे की मेहनत और समर्पण कहीं ज्यादा बड़ी कहानी कहता है। शैलेंद्र बताते हैं कि 2016 में उन्होंने एनएसएस के जरिए समाज सेवा की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने शिक्षा को अपना मुख्य मिशन बनाया और वहां पहुंचे जहां शिक्षा का नामो-निशान भी नहीं था।
### स्लम बस्तियों से शिक्षा की लौ जलाई
शैलेंद्र का सबसे अहम योगदान स्लम इलाकों में देखा गया, जहां उन्होंने बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। जब बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते थे, तब शैलेंद्र ने उनके माता-पिता से बात की, उनकी जरूरतें समझीं और फिर उन्हें स्कूल तक पहुंचाया। आज उनके अपने गांव खुखड़ी में 100% बच्चे स्कूल जाते हैं। एक समय था जब यहां बच्चे केवल खिचड़ी खाने के लिए स्कूल जाते थे, लेकिन आज गांव के कई बच्चे सरकारी नौकरियों में हैं।
### 15 राज्यों में कैंप, समाज सेवा की मिसाल
शैलेंद्र केवल बिहार तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने देश के 15 से अधिक राज्यों में कैंप किए। अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, गुजरात जैसे राज्यों में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, टीकाकरण, और सामाजिक जागरूकता जैसे क्षेत्रों में योगदान दिया।
हरियाणा के नूंह जिले का उदाहरण विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहां शैलेंद्र ने टीकाकरण दर को 30% से 60% तक पहुंचाया। एक ऐसा इलाका जहां लोग अभी भी वैक्सीन से डरते थे, वहां लोगों को जागरूक करना और सरकारी योजनाओं से जोड़ना आसान नहीं था, लेकिन शैलेंद्र की मेहनत रंग लाई।
### एनएसएस टीम लीडर बनकर किया नेतृत्व
शैलेंद्र कुमार एनएसएस में एक सक्रिय सदस्य रहे और समय के साथ-साथ टीम लीडर भी बने। उन्होंने कई कैंप्स में नेतृत्व किया और युवाओं को समाज सेवा से जोड़ने का कार्य किया। वे मानते हैं कि एनएसएस केवल समाज सेवा नहीं, बल्कि आत्मविकास का जरिया है। यह युवाओं को नेतृत्व, समर्पण और राष्ट्रीय भावना से जोड़ता है।
### पर्यावरण से लेकर स्वास्थ्य तक, हर क्षेत्र में योगदान
शैलेंद्र ने हजारों पौधे लगाए हैं। उनका मानना है कि वृक्षारोपण केवल पर्यावरण की रक्षा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उपहार है। साथ ही वे एड्स जागरूकता, रक्तदान शिविर, नशा मुक्ति, और प्रौढ़ शिक्षा जैसे कई मोर्चों पर भी सक्रिय रहे हैं।
कोरोना काल के समय, जब अधिकतर लोग घरों में बंद थे, शैलेंद्र ने मास्क, सैनिटाइज़र और खाद्य सामग्री का वितरण कर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई। वहीं, पितृपक्ष मेले जैसे बड़े आयोजनों में भी उन्होंने सक्रिय योगदान दिया।
### भविष्य की योजना: बनना है देश का बड़ा समाज सेवक
शैलेंद्र कुमार का सपना किसी बड़ी सरकारी नौकरी का नहीं, बल्कि एक बड़ा समाज सेवक बनने का है। वे कहते हैं, “आईएएस-आईपीएस बनने का सपना हर कोई देखता है, लेकिन मेरा सपना राष्ट्र को समर्पित जीवन जीना है। मैं चाहता हूं कि देश का हर युवा राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाए।”
वे युवाओं से अपील करते हैं कि वे केवल करियर के पीछे न भागें, बल्कि समाज सेवा को भी अपनाएं। शैलेंद्र का मानना है कि एक अच्छा समाज सेवक बनने के लिए न तो ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है और न ही बड़े पद की, जरूरत होती है तो सिर्फ एक नेक सोच और मजबूत इरादे की।
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**समाप्ति:**
शैलेंद्र कुमार की कहानी बताती है कि सीमित संसाधन, संघर्षपूर्ण जीवन और गांव की पृष्ठभूमि भी किसी को बड़ा बनने से नहीं रोक सकती। उन्होंने दिखा दिया कि अगर सोच बड़ी हो और लक्ष्य समाज सेवा का हो तो राष्ट्रपति पुरस्कार भी आपके कदम चूम सकता है।
शैलेंद्र आज न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी हर उस नौजवान के लिए एक रोशनी की किरण है जो बदलाव लाने का सपना देखता है
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