बिहार की राजनीति एक बार फिर से गरमा गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी और गोपालपुर के जेडीयू विधायक गोपाल मंडल ने एक ऐसा बयान दे दिया है, जो राज्य के सियासी समीकरणों में हलचल पैदा कर सकता है। उन्होंने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के हालिया वायरल वीडियो मामले पर जहां उनका बचाव किया, वहीं उनके शासनकाल और राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पर तीखा हमला भी किया।
गोपाल मंडल ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर का अपमान करने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने स्पष्ट किया कि लालू प्रसाद यादव ने पिछड़ों, दलितों और महादलितों को राजनीतिक आवाज दी और सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाया। मंडल ने कहा, “ऐसा व्यक्ति बाबा साहब का अपमान कर ही नहीं सकता। उनकी उम्र हो चुकी है, भूलवश कुछ हो गया होगा। उन्हें बेवजह घसीटा जा रहा है।”
दरअसल, हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें लालू यादव को डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के सामने बैठने को लेकर कुछ आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इस पर गोपाल मंडल ने उनके पक्ष में खड़े होकर यह बताने की कोशिश की कि लालू यादव की नीयत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
लेकिन यहीं पर बात खत्म नहीं होती। गोपाल मंडल ने लालू यादव के बीते शासनकाल को याद करते हुए कहा कि उस दौर में यादव समाज के प्रभावशाली लोगों ने पिछड़े, अति पिछड़े और अन्य वर्गों पर अत्याचार किए। उन्होंने कहा कि यही कारण रहा कि बिहार की जनता ने उन्हें चुनावों में नकार दिया। उनका कहना था कि लालू-राबड़ी शासन के दौरान मुसलमानों को भी कोई विशेष लाभ नहीं मिला।
तेजस्वी यादव पर कटाक्ष करते हुए मंडल ने कहा कि लालू यादव उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, लेकिन अब उन्हें मौका नहीं मिलेगा। “जनता नीतीश कुमार के विकास और स्थिरता के साथ है,” उन्होंने कहा। गोपाल मंडल के अनुसार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को सजाया, संवारा और समाज के सभी कमजोर वर्गों को योजनाओं के माध्यम से मुख्यधारा में लाया।
उनके अनुसार, आरक्षण व्यवस्था को सशक्त बनाकर नीतीश कुमार ने यह सुनिश्चित किया कि दलित, महादलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से सशक्त हो सके। गोपाल मंडल ने साफ कहा कि जब तक नीतीश कुमार चाहेंगे, बिहार के मुख्यमंत्री वही रहेंगे।
इस बयान ने जहां एक ओर गोपाल मंडल को सामाजिक न्याय के समर्थक और पुराने राजनीतिक संबंधों का सम्मान करने वाला दिखाया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने लालू यादव के परिवार और उनकी राजनीतिक विरासत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
विश्लेषकों के अनुसार, गोपाल मंडल का यह दोतरफा बयान केवल व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि जेडीयू की अंदरूनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। जहां एक ओर पार्टी सामाजिक न्याय के प्रतीक लालू यादव की व्यक्तिगत छवि को सम्मान देती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर उनके वंशवादी राजनीति के खिलाफ स्पष्ट संदेश दे रही है।
यह बयान आने वाले विधानसभा चुनावों के पहले काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। जेडीयू और बीजेपी के बीच बढ़ते तालमेल और विपक्षी गठबंधन की तैयारियों के बीच गोपाल मंडल का बयान राजनीतिक ध्रुवीकरण को और तेज कर सकता है।
बिहार में जहां एक ओर नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर स्थिरता का संदेश दिया जा रहा है, वहीं राजद के लिए यह संकेत है कि सिर्फ विरासत और जातीय समीकरण अब चुनाव जिताने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। जनता अब विकास और शासन की स्थिरता के साथ है – यह संदेश गोपाल मंडल ने अपने बयान के जरिए देने की कोशिश की है।
इस प्रकार, यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में आने वाले समय की दिशा और दशा का संकेत भी बन सकता है।
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