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यह रिपोर्ट https://www.facebook.com/share/18puPtSvMw/एक गंभीर और व्यापक मसले को उजागर करती है जिसमें साइबर सुरक्षा, डिजिटल आज़ादी, और आम नागरिकों की सुविधा – तीनों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती सामने आती है। नीचे इस पूरे विषय का एक संतुलित सारांश और विश्लेषण दिया ग

मोबाइल यूज़र्स के लिए नया खत या सुरक्षा कवच? सरकार के साइबर सिक्योरिटी नियमों पर बहस तेज

देशभर के 121 करोड़ मोबाइल यूज़र्स को जल्द ही एक नए सिस्टम का सामना करना पड़ सकता है। संचार मंत्रालय ‘टेलीकॉम साइबर सिक्योरिटी रूल्स 2024’ में बदलाव की तैयारी में है, जिसका मकसद **साइबर ठगी को रोकना है, लेकिन इससे आम जनता पर अतिरिक्त बोझ और डिजिटल आज़ादी पर असर पड़ने की आशंका भी जताई जा रही है।

क्या है प्रस्तावित सिस्टम?

सरकार एक पेड मोबाइल नंबर वैलिडेशन (MNV) प्लेटफॉर्म शुरू करना चाहती है, जिसके जरिए:

* बैंक और कंपनियां ग्राहकों के मोबाइल नंबर की पुष्टि टेलीकॉम विभाग से कराएंगी।हर वैरिफिकेशन के लिए:

  * सरकारी संस्थानों को ₹1.50
  * निजी कंपनियों को ₹3 चुकाने होंगे।
* यह नियम हर उस प्लेटफॉर्म पर लागू होगा जहां मोबाइल नंबर की पुष्टि जरूरी है जैसे कि ऐप साइनअप, OTP आधारित लेनदेन आदि।

लेकिन कहां से शुरू होती है दिक्कत?

1. नंबर ‘फेक’ घोषित हुआ तो बंद!
   यदि किसी मोबाइल नंबर को संदिग्ध माना गया, तो वह अस्थायी रूप से बंद किया जा सकता है। यह उन लोगों के लिए मुसीबत है जो एक ही नंबर से कई सेवाएं इस्तेमाल करते हैं।

2. एक नंबर = एक खाता?
   अब तक एक मोबाइल नंबर से कई बैंक अकाउंट या सेवाएं संचालित की जा सकती थीं, लेकिन प्रस्तावित नियमों के तहत बैंक और कंपनियां हर खाता/सेवा के लिए अलग नंबर की मांग कर सकती हैं – ताकि उन्हें एक ही नंबर के लिए बार-बार फीस न देनी पड़े।
   🔁 इसका अप्रत्यक्ष भार अंततः उपभोक्ता की जेब पर आ सकता है।

3. ग्रामीण भारत को सबसे ज्यादा असर
   जहां एक मोबाइल नंबर पूरे परिवार की बैंकिंग, सरकारी योजनाएं और डिजिटल भुगतान चलाता है  वहां यह सिस्टम **संभावित अव्यवस्था खड़ी कर सकता है।

डिजिटल आज़ादी और निजता पर सवाल

नियमों के मसौदे में “Telecommunication Identifier User Entity (TIUE)” की परिभाषा इतनी व्यापक है कि साधारण नागरिक भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।

डिजिटल राइट्स संगठनों जैसे Access Now ने इसे निजता और कानूनी ढांचे के खिलाफ बताया है। वहीं IAMAI को आशंका है कि यह नियम हर डिजिटल सेवा प्रदाता और यूजर पर लागू हो सकता है।

सरकार का पक्ष: सुरक्षा और आय दोनों

सरकार का दावा है कि यह कदम साइबर अपराध पर अंकुश लगाएगा।
इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर का आकलन है कि 2025 में साइबर ठगी ₹1.02 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है।
बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे गूगल, अमेजॉन, नेटफ्लिक्स आदि से वैरिफिकेशन शुल्क के ज़रिए सरकार को राजस्व लाभ भी होगा।


साल दर साल बढ़ती साइबर ठगी

| साल  | ठगी की राशि (₹ करोड़ में)
| 2022 | 2,306                    
| 2023 | 7,465                    
| 2024 | 22,842 (अब तक)           
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अब आगे क्या?

सरकार को इस मसौदे पर जनता की प्रतिक्रिया मिल चुकी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि:

* क्या सरकार इन नियमों में संशोधन करती है
* या इन्हें जैसा है वैसा ही लागू किया जाएगा।

सुरक्षा ज़रूरी है, लेकिन संतुलन भी उतना ही अहम है। अगर इस सिस्टम को बिना व्यापक तैयारी और स्पष्ट दिशा-निर्देशों के लागू किया गया, तो यह सुरक्षा के नाम पर आम नागरिकों के लिए नई दिक्क तेंपैदा कर सकता है।

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