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सहरसा, बिहार: शुक्रवार को सहरसा सदर अस्पताल का ओपीडी परिसर उस समय रणक्षेत्र में तब्दील हो गया, जब दवा वितरण में हुई भारी लापरवाही से गुस्साए मरीजों और उनके परिजनों ने जमकर हंगामा किया। आक्रोशित भीड़ ने दवा काउंटर का शीशा तोड़ डाला, जिससे अस्पताल में कुछ देर के लिए अफरा-तफरी का माहौल बन गया। इस घटना में कई मरीज और उनके परिजन चोटिल भी हुए।

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घटना का विवरण
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, घटना दोपहर के समय की है। सहरसा की तेज गर्मी और चिलचिलाती धूप में मरीज और उनके परिजन घंटों से दवा काउंटर के बाहर लंबी कतारों में खड़े थे। उनकी उम्मीद थी कि अस्पताल से उन्हें उनकी बीमारी के लिए आवश्यक दवाएँ मिलेंगी। हालाँकि, उनकी यह उम्मीद तब टूट गई जब उन्होंने देखा कि दवा वितरण काउंटर पर तैनात कर्मी मरीजों की लंबी कतारों और उनकी बेचैनी को अनदेखा कर आपस में बातचीत में व्यस्त थे। बार-बार आग्रह करने के बावजूद जब उन्हें दवा नहीं मिली और कर्मियों का लापरवाह रवैया जारी रहा, तो मरीजों और उनके परिजनों का धैर्य जवाब दे गया।


यह आक्रोश देखते ही देखते एक बड़े हंगामे में बदल गया। मरीजों और उनके साथ आए परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जोरदार नारेबाजी शुरू कर दी। इसी बीच, गुस्साई भीड़ में से कुछ लोगों ने दवा काउंटर के शीशे पर वार कर दिया, जिससे वह टूट गया। शीशा टूटने की आवाज से पूरे ओपीडी परिसर में भगदड़ मच गई। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, जिससे स्थिति और भी भयावह हो गई।


घायलों की जानकारी
इस भगदड़ और हंगामे में कई लोग चोटिल हो गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार, घायल होने वालों में नंदलाली निवासी मधु देवी, बसौना की रिमझिम देवी और बनगांव की लुटन देवी शामिल हैं। इन सभी को मामूली चोटें आई हैं, जिन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया। घटना के तुरंत बाद, अस्पताल परिसर में तनाव का माहौल व्याप्त हो गया और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए।


अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया
घटना की सूचना मिलते ही सहरसा सदर अस्पताल प्रबंधन की टीम तत्काल मौके पर पहुंची। उन्होंने किसी तरह आक्रोशित भीड़ को शांत कराने का प्रयास किया और स्थिति को नियंत्रण में लिया। अस्पताल प्रशासन ने घटना की जाँच का आश्वासन दिया है, लेकिन मरीजों और उनके परिजनों में अस्पताल के प्रति भारी रोष देखने को मिला।


मरीजों का गुस्सा और अस्पताल पर आरोप
मरीजों और उनके परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सहरसा सदर अस्पताल में मरीजों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। दवाओं की कमी, वितरण में मनमानी और कर्मचारियों का गैर-जिम्मेदाराना रवैया यहाँ की आम समस्या बन गई है। कई मरीजों ने बताया कि उन्हें बाहर से दवा खरीदने को मजबूर किया जाता है, जबकि उन्हें निःशुल्क दवाएँ मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है, जिससे मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पाता। यह घटना केवल एक दिन की समस्या नहीं है, बल्कि यह अस्पताल की बदहाल व्यवस्था का एक प्रतीक है।


व्यवस्था पर सवाल
यह घटना सहरसा सदर अस्पताल की लचर व्यवस्था को उजागर करती है। सरकारी अस्पतालों का मुख्य उद्देश्य गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना होता है। लेकिन सहरसा सदर अस्पताल में हुई यह घटना दर्शाती है कि यहाँ इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है। दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, वितरण प्रणाली को सुचारु बनाना और कर्मचारियों को जवाबदेह बनाना अस्पताल प्रशासन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। इस तरह की घटनाएँ न केवल मरीजों का मनोबल तोड़ती हैं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था पर से जनता का विश्वास भी उठा देती हैं।


आगे की राह
इस घटना के बाद, यह आवश्यक है कि सहरसा सदर अस्पताल प्रशासन तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए। सबसे पहले, दवा वितरण प्रणाली को पारदर्शी और कुशल बनाया जाए। दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए और कर्मचारियों को मरीजों के प्रति संवेदनशीलता और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाया जाए। दोषी कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके अलावा, अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि आपात स्थिति में स्थिति को संभाला जा सके। राज्य सरकार को भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए सहरसा सदर अस्पताल की व्यवस्था में सुधार के लिए आवश्यक फंड और संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए ताकि आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मिल सकें।

 

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By admin

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