बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ नेताओं की नहीं, बल्कि भोजपुरी फिल्म जगत और लोकसंगीत के सितारों की भी जंग बन गया है। राजनीति में ग्लैमर का तड़का लगाते हुए खेसारी लाल यादव, मैथिली ठाकुर और रितेश पांडेय जैसे चर्चित चेहरे इस बार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। गीतकार और मौजूदा विधायक विनय बिहारी पहले से ही राजनीति में सक्रिय हैं, जबकि भोजपुरी जगत के बड़े नाम — मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और पवन सिंह — अपने-अपने दलों के स्टार प्रचारक के रूप में मैदान में हैं।
सभी दलों ने सितारों पर जताया भरोसा
एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज पार्टी—सभी ने अपने-अपने हिसाब से फिल्मी चेहरों को उम्मीदवार बनाकर जनसंपर्क का नया समीकरण बनाया है।
बीजेपी ने मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को साधने के लिए लोकगायिका मैथिली ठाकुर को अलीनगर से प्रत्याशी बनाया है।
आरजेडी ने भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव को छपरा से उतारकर युवा और प्रवासी मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की है।
वहीं जन सुराज पार्टी ने गायक-एक्टर रितेश पांडेय को करगहर सीट से टिकट देकर शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दों पर फोकस किया है।
उम्मीदवारों की बातें
मैथिली ठाकुर ने कहा, “मैं राजनीति को समाज सेवा का माध्यम मानती हूं। मोदी जी और नीतीश जी से प्रेरित होकर राजनीति में आई हूं।”
खेसारी लाल यादव बोले, “मैं कलाकार जरूर हूं, पर राजनीति में सेवा करने आया हूं। पलायन खत्म करना मेरी प्राथमिकता है।”
वहीं रितेश पांडेय ने कहा, “शिक्षा बहुत जरूरी बा। बिहार की राजनीति बदलाव चाहती है और मैं उसी बदलाव की राह पर हूं।”
प्रचारक के रूप में पवन सिंह, मनोज तिवारी और रवि किशन
भोजपुरी गायक पवन सिंह इस बार बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं। वह कहते हैं कि चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि पार्टी के सिपाही की तरह प्रचार करेंगे। उनके साथ मनोज तिवारी, रवि किशन और निरहुआ भी बिहार में एनडीए उम्मीदवारों के लिए प्रचार अभियान में जुटेंगे।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का कहना है, “भोजपुरी कलाकार मीडिया कवरेज और भीड़ जुटाने में मदद करते हैं, लेकिन जीत की गारंटी नहीं देते। राजनीति और मनोरंजन में फर्क होता है।”
वहीं पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, “मैथिली ठाकुर को छोड़ दें तो बाकी कई कलाकारों पर भोजपुरी में अश्लीलता फैलाने के आरोप हैं। हालांकि युवाओं में इनकी लोकप्रियता से वोटों पर असर जरूर पड़ सकता है।”
निष्कर्ष
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इन कलाकारों की लोकप्रियता से चुनावी रैलियों में उत्साह और भीड़ तो बढ़ेगी, लेकिन बिहार की सियासत जातीय समीकरण, संगठन की ताकत और स्थानीय विकास के मुद्दों पर ही निर्भर करती है।
मतलब साफ है — स्टार चेहरे वोटरों का ध्यान तो खींच सकते हैं, पर जीत अब भी जमीनी सियासत ही तय करेगी।
