राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना दिया है। आसींद उपखंड के एक गांव में एक पिता ने अपनी जीवित बेटी के नाम शोक पत्रिका छपवा दी और घर के बाहर 12 दिन की बैठक का आयोजन कर दिया। यह घटना पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में टूटन तथा आहत भावनाओं की चरम अभिव्यक्ति मानी जा रही है।
मामले के अनुसार, गांव निवासी व्यक्ति ने अपनी बेटी पूजा की शादी 25 अप्रैल 2025 को बड़े धूमधाम से गांव के ही एक युवक के साथ की थी। विवाह के शुरुआती दिनों में सब कुछ सामान्य था, लेकिन कुछ ही समय बाद परिस्थितियां बदलने लगीं। आरोप है कि विवाह के पश्चात पूजा ने अपने पति के रिश्तेदार से प्रेम संबंध बना लिए और अंततः अपने पति को छोड़कर उसके साथ चली गई।
परिवार के लिए यह स्थिति बेहद शर्मिंदगी और मानसिक पीड़ा का कारण बनी। मामले को और गंभीर तब कर दिया जब पूजा ने थाने में पहुंचकर अपने ही पिता के खिलाफ बयान दर्ज करवा दिए। इन घटनाओं से आहत होकर पिता ने अत्यंत भावुक और कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी जीवित बेटी को मानसिक रूप से मृत मानते हुए उसके नाम की शोक पत्रिका छपवा दी।
शोक पत्रिका में लिखा गया:
*”अत्यन्त दुःख के साथ सूचित किया जाता है कि मेरी सुपुत्री का विवाह दिनांक 25 अप्रैल 2025 को हुआ है, जो कि विवाह पश्चात दिनांक 29 जुलाई 2025 को चली गई है। इसलिए हमारे परिवार के लिए वह स्वर्गवास हो गई। जिसका द्वादशा दिनांक 10 अगस्त रविवार को रखा गया है।”*
इतना ही नहीं, पिता ने इस शोक पत्रिका को गांव और आस-पास के क्षेत्रों में वितरित किया और घर के बाहर पारंपरिक तरीके से 12 दिन की बैठक का आयोजन भी किया। गांव में इस अनोखी और चौंकाने वाली घटना की चर्चा जोरों पर है। कुछ लोग पिता के कदम को अत्यधिक भावुक प्रतिक्रिया मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे सामाजिक मूल्यों और रिश्तों के टूटने का दुखद प्रतीक बता रहे हैं।
इस पूरे मामले ने स्थानीय समाज में भी बहस छेड़ दी है। कई लोग मानते हैं कि इस तरह का कदम पारिवारिक विवाद को और बढ़ा सकता है, जबकि कुछ का कहना है कि यह पिता के मन में गहरे बैठी चोट और आहत भावनाओं का परिणाम है।
वहीं, कानूनी दृष्टिकोण से यह मामला संवेदनशील है, क्योंकि शोक पत्रिका में जीवित व्यक्ति को मृत बताना कई स्थितियों में मानहानि या मानसिक उत्पीड़न के दायरे में आ सकता है। हालांकि, अब तक इस मामले में पुलिस कार्रवाई की कोई जानकारी सामने नहीं आई है।
भीलवाड़ा की यह घटना केवल एक परिवार की निजी त्रासदी नहीं, बल्कि सामाजिक रिश्तों, मान-सम्मान और भावनाओं की जटिलता का भी प्रतीक बन गई है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि रिश्तों में टूटन के समय भावनाओं का संतुलन कितना महत्वपूर्ण है और कठोर कदम कितनी दूरगामी सामाजिक व कानूनी प्रभाव डाल सकते हैं।
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