बिहुलाबिहुला


आज 15 जुलाई 2025 को श्रावण कृष्ण पंचमी के शुभ अवसर पर बेड़ा पांच की परंपरा को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इस दिन नेतुला धोबिन की विशेष पूजा की जाती है, जिन्हें बिहुला-विषहरी गाथा की सहायक नायिका माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि नेतुला के संग से ही बिहुला को स्वर्ग का मार्ग मिला और अपनी इच्छित मंजिल हासिल हुई। इस दिन धोबी समाज द्वारा विशेष रूप से डलिया सजाकर नेतुला को अर्पित किया जाता है।

बेड़ा पांच के दिन गंध-धूप पूजा और विशेष धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया। खास बात यह रही कि इस दिन मनसा देवी मंदिर में देवी का पिंड बिना कलश के रहता है। मंदिर के पुजारी संतोष झा ने देवी से आज्ञा लेकर बाजे-गाजे के साथ कुंभकार देवानंद पंडित के घर जाकर बारी कलश पूजा की शुरुआत की।

बिहुला
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बारी कलश में पांचों विषहरी देवियों का आह्वान किया गया। कलश के मध्य स्थित नाग के मस्तक पर देवी **जया** का आह्वान हुआ, जो नीले वस्त्रों में, तीर-धनुष एवं नाग धारण किए हुए, गौर वर्ण की देवी हैं। उनके मस्तक पर नाग मुकुट और ललाट पर नाग की बेंदी विराजमान थी। उनके चारों ओर क्रमशः दुतीला भवानी, पद्मा कुमारी, आदिकसुमिन और मैना विषहरी का आह्वान किया गया।

कलश पर नव बेंत की पूजा की गई और फल, फूल, धूप, दीप, पान, मेवा व चंदन से देवी को अर्पित किया गया। इसके बाद कलश को लेकर सभी मंदिर पहुँचे, जहां देवी की पिंड पर छह श्रृंगार (सिंदूर की छह खड़ी रेखा) और छह भागों में नैवेद्य अर्पित किया गया। इनमें से पांच भाग पांच बहन विषहरियों को और एक भाग नेतुला धोबिन को समर्पित किया गया।

पूजा के दौरान साहित्यकार आलोक कुमार, मंजूषा कलाकार हेमंत कश्यप, गौरी शंकर, चंद्रशेखर, नंदकिशोर, विनय लाल, संजय लाल, रामशरण दास समेत मनसा देवी मंदिर समिति के सदस्य और सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

कल 16 जुलाई को कर्क संक्रांति के अवसर पर सेमापुर घाट पर कलश विसर्जन और देवी स्थापना की जाएगी। शाम सात बजे कलश शोभायात्रा के साथ कुंभकार के घर से सेमापुर घाट तक जाएगी। रास्ते में व्रती बारी कलश में माल्यार्पण करेंगे। पूजन के बाद कलश को मंदिर लौटाकर देवी के पिंड पर स्थापित किया जाएगा। यहीं से घर-घर में बिहुला विषहरी गाथा और मनसा माहात्म्य का पाठ आरंभ होगा।

बारी कलश पूजा में प्रयुक्त कलश कच्ची मिट्टी का होता है, जिसमें पांच नाग – विषहरी देवियों के वाहन माने जाते हैं। इसी ‘बारी’ नाम पर इस कलश और पूजा की परंपरा टिकी हुई है।

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