पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियाँ अपनी चरम पर हैं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस बार अपनी पारंपरिक भूमिका से आगे बढ़कर राजनीति की नई चाल खेलने को तैयार है। पार्टी का उद्देश्य है कि 2020 के मुकाबले अधिक सीटों पर चुनाव लड़े जाएँ और जीतने की संभावनाओं को अधिकतम किया जाए। इसके लिए सांसदों, नेताओं और जिला कार्यकर्ताओं में व्यापक मंथन हो रहा है, और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया को पूरी तरह सर्वे रिपोर्ट और विधायकों के प्रदर्शन पर आधारित बनाने का निर्णय लिया गया है।

बीजेपी के रणनीतिक स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है कि जिन सीटों पर पिछली बार हार हुई या वर्तमान विधायकों का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं माना गया, उन सीटों पर बदलाव किया जाए। इसके चलते प्रदेश कार्यालय पटना के चारों ओर उमड़ी भीड़ और नेताओं की भागदौड़ इस गहमागहमी को और बढ़ा रही है।

टिकट वितरण की रणनीति और चुनाव समिति की भूमिका

बीजेपी का मानना है कि उम्मीदवारों का चयन ठोस जनमत सर्वेक्षण और जिला स्तर पर समीक्षा के आधार पर होना चाहिए। जहाँ रिपोर्ट और विधायक का प्रदर्शन मजबूत हो, वहाँ मौजूदा विधायक को दोबारा मौका मिलेगा। यह मान्यता पार्टी के भीतर निष्पक्षता और उत्तरदायित्व का संदेश भी देती है।

प्रदेश में 19 सदस्यीय चुनाव समिति दो दिनों की बैठक कर रही है। इस बैठक में हर विधानसभा सीट पर संभावित दावेदारों की सूची तैयार की जा रही है।
चर्चा का मुख्य फोकस उन सीटों पर रहा जहाँ पिछली बार हार हुई थी या जहाँ वर्तमान विधायक अपेक्षित प्रदर्शन नहीं दे पाए।

-पार्लियामेंटरी बोर्ड अंतिम मुहर लगाएगा
चुनाव समिति, शॉर्टलिस्ट किए गए प्रत्याशियों की सूची केंद्रीय चुनाव समिति को सौंपेगी। वहाँ से एक नाम को फाइनल कर प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव चिह्न देने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
यह प्रक्रिया इस प्रकार होगी कि पहले एक विधानसभा सीट पर तीन संभावित नाम फाइनल होंगे, फिर उसी में से एक को अंतिम रूप दिया जाएगा।

पिछली हार वाले उम्मीदवारों की स्थिति

2020 में बीजेपी ने 110 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें 74 सीटों पर जीत मिली। 36 सीटों पर हार हुई थी। इस बार उन हार वाले उम्मीदवारों में से कुछ को पुनः मौका दिया जा सकता है।

सूत्रों के अनुसार, उनमें से 8 से 10 दावेदारों को इस बार पुनः टिकट मिल सकता है। संभावित नामों में —

गोह (औरंगाबाद) से मनोज कुमार शर्मा
बोधगया से हरि मांझी
रजौली से कन्हैया रजवार
हिसुआ से अनिल सिंह
बैकुंठपुर से मिथिलेश तिवारी
सिवान से ओमप्रकाश यादव
भागलपुर से रोहित पांडे
बख्तियारपुर से रणविजय सिंह
रामगढ़ से अशोक सिंह

लेकिन यह सूची अंतिम नहीं है, क्योंकि अभी चयन प्रक्रिया जारी है।

टिकट कट सकती हैं ये सीटें

उन दावेदारों की  जीत-हार का अंतर 10,000 से अधिक था, उन्हें इस बार “डेंजर जोन” में माना जा रहा है। कई नाम ऐसे हैं जो इस श्रेणी में आते हैं, जैसे —
विक्रम, तरारी, शाहपुर, मोहनिया, भभुआ, राघोपुर, बकड़ी, दानापुर, मनेर, जॉकीहाट, मुजफ्फरपुर इत्यादि। कई मौजूदा विधायकों—नंदकिशोर यादव (पटना साहिब), अमरेंद्र प्रताप सिंह (आरा), राघवेंद्र प्रताप सिंह (बड़हरा), आदि—को भी इस श्रेणी में स्थान दिया जा रहा है।

कुछ विधायक ऐसे हैं जो “बाउंड्री लाइन पर” हैं—जो टिकट मिल सकते हैं, लेकिन पक्का नहीं है।
उदाहरण के लिए: प्रमोद कुमार (मोतिहारी), रेणु देवी (बेतिया), सुनील मणि त्रिपाठी (गोविंदगंज)।

पक्के माने जा रहे दावेदार

कुछ सदस्यों का टिकट लगभग तय माना जा रहा है, जैसे —

विजय कुमार सिन्हा (लखीसराय)
सम्राट चौधरी (पटना साहिब)
मंगल पांडे (कुम्हरार / सिवान)
संजय सरावगी (दरभंगा)
नीतीश मिश्रा (झंझारपुर)
नीरज बबलू (छातापुर)
जनक राम (रामनगर)
नितिन नवीन (बांकीपुर)
  इन नामों को पार्टी ने अन्य स्रोतों से संवाद और स्थिर अंतर्संबंधों के आधार पर लगभग पक्का माना जा रहा है।

रणनीतिक चुनौतियाँ और लक्ष्य

इस बार भाजपा की रणनीति है — विजय की अधिकतम सीटें अपने नाम करना। इसके लिए पार्टी विश्लेषण कर रही है कि किस सीट पर अभी बदलाव करना है, और किन जगह बेहतर संतुलन बरकरार रखना है।

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है:

> “टीम में टिकट वितरण बैठकर तय किया जा रहा है। दो दर्जन से अधिक मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने की तैयारी है, विशेषकर जिनका प्रदर्शन कमतर रहा हो।”

भाजपा का लक्ष्य है 243 सीटों में से एक बड़ी हिस्सेदारी हासिल करना, न कि केवल गठबंधन के अंदर संतुलन बैठाना।

निष्कर्ष

2025 बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तैयारी कांग्रेस और महागठबंधन को चुनौती देने की है।
यह केवल टिकट बांटने की राजनीति नहीं, बल्कि नए समीकरणों, दावेदारों और प्रदर्शन परखने की रणनीति है। हैरानी की बात नहीं होगी यदि इस बार कई पुराने और नए चेहरे मैदान में होंगे।
अगले कुछ हफ्तों में यह देखा जाएगा कि किस प्रकार बीजेपी इन सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करती है और चुनावी खेल को अपने हिसाब से मोड़ देती है।

 

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