गंगा नदी का जलस्तर घटने के साथ ही जहां एक ओर लोगों ने राहत की सांस ली थी, वहीं दूसरी ओर बाढ़ पीड़ित परिवारों की समस्याएं अब भी जस की तस बनी हुई हैं। पानी उतरने के बाद भी पीड़ितों के सामने घर, आजीविका और शिक्षा से जुड़ी गंभीर परेशानियां खड़ी हो गई हैं।
भागलपुर जिले के बिंद टोली गांव में स्पर संख्या आठ और नौ के बीच गंगा का तेज कटाव जारी है। इस कटाव की मार झेलते हुए दर्जनों परिवारों के घर नदी की धारा में समा गए। अपना सबकुछ खो चुके ये लोग अब सड़क किनारे प्लास्टिक शीट के सहारे जीवन गुजारने को मजबूर हैं। खुले आसमान के नीचे बरसात में भींगते हुए रहना इन परिवारों की नियति बन गई है। छोटे-छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी इसी कठिन परिस्थिति में जीवन यापन कर रहे हैं।
इसी तरह वीरनगर क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित परिवारों की स्थिति भी बेहद दयनीय है। यहां कई घरों के आसपास अब भी पानी जमा हुआ है, जिसके कारण लोग अपने घरों में लौट नहीं पा रहे हैं। जमे हुए पानी से बदबू फैलने लगी है, जबकि कचरा और गंदगी स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा कर रहे हैं। मजबूरी में ये परिवार तटबंध और सड़क के किनारे प्लास्टिक तानकर अस्थायी रूप से रह रहे हैं। भीषण उमस और बारिश के बीच उनका जीवन पूरी तरह भगवान भरोसे है।
बाढ़ ने बच्चों की पढ़ाई पर भी गहरा असर डाला है। प्राथमिक विद्यालय वीरनगर, मध्य विद्यालय बुद्धचक और प्राथमिक विद्यालय सैदपुर महादलित टोला लगातार बंद हैं। शिक्षा व्यवस्था बाधित होने से बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता दिख रहा है। शिक्षक और अभिभावक दोनों ही चिंता में हैं कि पढ़ाई का यह नुकसान कैसे पूरा होगा।
दूसरी ओर, बाढ़ पीड़ित परिवार सरकार की ओर से मिलने वाली जीआर (ग्रैच्युटी रिलीफ) राशि के इंतजार में हैं। अभी तक अधिकांश परिवारों को राहत नहीं मिल पाई है। रोजाना भूखे-प्यासे परिवार प्रशासन की ओर टकटकी लगाए हुए हैं कि कब उन्हें मदद मिलेगी और वे अपने जीवन को पटरी पर ला सकेंगे।
साफ है कि गंगा के कटाव और जलजमाव ने बाढ़ पीड़ितों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अब आवश्यक है कि प्रशासन शीघ्र राहत और पुनर्वास कार्य को गति दे, ताकि प्रभावित परिवारों को जीवन यापन के लिए आवश्यक सुविधाएं मिल सकें और बच्चे फिर से विद्यालयों में पढ़ाई शुरू कर सकें। अन्यथा, यह आपदा पीड़ितों के लिए लंबी त्रासदी में बदल सकती है।
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