79वें स्वतंत्रता दिवस के दिन, जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया अनुमंडल का लाल, जवान **अंकित यादव** तिरंगे में लिपटकर अपने गांव लौटा। जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में घुसपैठ को नाकाम करते हुए शहीद हुए इस वीर सपूत की विदाई गर्व और गम, दोनों का अद्भुत संगम बन गई। गांव में बाढ़ का पानी भरा होने के बावजूद उनकी अंतिम यात्रा घुटने भर पानी में निकली और चार साल के मासूम बेटे ने अपने पिता को मुखाग्नि दी, जिससे वहां मौजूद हर आंख नम हो गई।
**बाढ़ के बीच पहुंचा पार्थिव शरीर**
अंकित यादव का पार्थिव शरीर सेना के जवानों और परिजनों के साथ गांव पहुंचा। बाढ़ के पानी के कारण शव को घुटने भर पानी से होकर ईंट भट्ठे के पास ले जाया गया, जहां सड़क किनारे अंतिम संस्कार किया गया। पानी से भीगी धरती और आसमान में गूंजते *भारत माता की जय* के नारों के बीच, चार साल के बेटे ने पिता की चिता को अग्नि दी।
**तिरंगे में लिपटा वीर स्वतंत्रता दिवस पर लौटा**
15 अगस्त को जब देशभर में झंडा फहराया जा रहा था, उसी दिन नवगछिया की धरती पर तिरंगे में लिपटा बेटा लौटा। पूरा इलाका *अमर शहीद अंकित यादव अमर रहें* और *भारत माता की जय* के नारों से गूंज उठा। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े।
**सरकार और नेताओं ने दी श्रद्धांजलि**
अंतिम संस्कार से पहले बिहार सरकार की ओर से प्रभारी मंत्री **संतोष सिंह** ने परिवार को 21 लाख रुपये का चेक सौंपा और हर संभव मदद का आश्वासन दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री **अश्विनी चौबे** भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे। सेना की ओर से **कर्नल जे.एस. राणा** ने कहा—*“जो अदम्य साहस अंकित ने दिखाया, वह प्रेरणादायक है। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन को नाकाम किया।”*
**सीमा पर अमर गाथा**
मंगलवार रात, जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तान की BAT टीम की घुसपैठ को रोकते हुए अंकित यादव शहीद हो गए। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में घुसपैठियों को खदेड़ दिया, लेकिन इस मुठभेड़ में अंकित ने अपनी जान कुर्बान कर दी। उनका साहस अब गांव की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन गया है।
**गांव का पहला शहीद**
गांव में सेना के कई जवान हैं, लेकिन यह पहला मौका था जब किसी ने प्राणों की आहुति दी। अंकित 2009 में बिहार रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। उनके तीनों भाई भी सेना में सेवाएं दे चुके हैं। परिजनों ने सरकार से सख्त नीति बनाने की मांग की है, ताकि फिर किसी मां की गोद सूनी न हो और किसी महिला का सिंदूर न उजड़े।
**गम और गर्व में डूबा परिवार**
अंकित अपने पीछे पत्नी, दो बेटे, माता-पिता और पूरा परिवार छोड़ गए। गांववाले जहां उनकी शहादत पर गर्व महसूस कर रहे हैं, वहीं अपूरणीय क्षति से आंसू भी नहीं थम रहे।
**आखिरी इच्छा अधूरी रह गई**
सिर्फ एक महीने पहले अंकित गांव आए थे। चार दिन पहले वार्ड सदस्य को पत्नी का वोटर कार्ड बनाने की बात कही थी। भाई निरंजन से आखिरी बार कहा था—*“भैया, अब आराम से आएंगे, तब कुछ नया करेंगे।”* किसी को अंदाजा नहीं था कि यह उनकी आखिरी विदाई होगी।
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