बिहार के बेगूसराय जिले से एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी सामने आई है, जो हर पिता के त्याग, संघर्ष और समर्पण की मिसाल बन गई है। यह कहानी है प्रोफेसर कमलेश कुमार की, जिन्होंने अकेले ही न सिर्फ एक पिता का, बल्कि मां का भी फर्ज निभाया और अपने दोनों बेटों को देश की सेवा में भेजा। उनकी जिंदगी आज कई लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
प्रोफेसर कमलेश कुमार वर्तमान में मंदसौर कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य हैं और इससे पहले वह बेगूसराय स्थित जीडी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। मूल रूप से अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बासे गांव के निवासी कमलेश कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही पूरी की और फिर पटना विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पीजी किया। वर्ष 1992 में उन्होंने जीडी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवा की शुरुआत की।

सड़क हादसे ने छीन लिया जीवनसाथी
कमलेश कुमार की शादी वर्ष 1986 में पटना जिले की माधुरी देवी से हुई थी। शादी के कुछ ही वर्षों बाद उनके दो बेटे हुए। बड़े बेटे का नाम सत्यम भारती है, जो आज भारतीय वायुसेना में विंग कमांडर हैं, जबकि छोटे बेटे शिवम भारती भारतीय सेना में मेजर के पद पर कार्यरत हैं।
लेकिन वर्ष 2000 में आई एक बड़ी विपदा ने उनकी जिंदगी को झकझोर कर रख दिया। एक सड़क हादसे में उनकी पत्नी माधुरी देवी की मौत हो गई। उस समय सत्यम की उम्र करीब 10 साल और शिवम की उम्र महज 6 साल थी। इस हादसे के बाद उनके पास दो ही विकल्प थे — या तो फिर से शादी कर एक नया जीवन शुरू करें या अकेले संघर्ष करते हुए अपने बच्चों की परवरिश करें।
मां और बाप दोनों की भूमिका निभाई
कमलेश कुमार ने दूसरा रास्ता चुना। उन्होंने यह ठान लिया कि वह अपने बच्चों को न सिर्फ पढ़ाएंगे-लिखाएंगे, बल्कि उन्हें मां का स्नेह भी देंगे। उन्होंने कॉलेज में पढ़ाने के साथ-साथ अपने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उठाई।
कमलेश कुमार बताते हैं, “मैं तीन पराठे बनाता था, जिसमें से एक पराठा खुद खाता था, एक पराठे को आधा-आधा बेटों को खिलाता और बाकी एक पराठे को दोनों के टिफिन में दे देता था। कई बार बच्चे वह टिफिन स्कूल से वापस ले आते ताकि शाम को मुझे खाना बनाने की जरूरत न पड़े।”
खुद भी जिए संघर्षों से भरा जीवन
कमलेश कुमार का खुद का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है। उनके पिता सेना में कार्यरत थे, लेकिन कुछ पारिवारिक कारणों से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और फिर संन्यास ले लिया। पिछले 45 वर्षों से उनके पिता मंडवार नामक स्थान पर संन्यासी जीवन जी रहे हैं। मां की मृत्यु और पिता के संन्यास लेने के बाद कमलेश का जीवन पूरी तरह अभिभावकविहीन हो गया था।
इन्हीं परिस्थितियों ने उन्हें मजबूती दी और उन्होंने ठान लिया कि वे अपने बच्चों को वह जीवन देंगे, जिसकी उन्हें कमी रही। कमलेश कुमार कहते हैं, “मैंने ये ठान लिया था कि जब मैं अपनी पत्नी से ऊपर जाकर मिलूं, तो उसकी आंखों में झांककर कह सकूं कि तुमने जो दो पौधे छोड़े थे, उन्हें मैंने वटवृक्ष बना दिया है।”
आज देश की सेवा में दोनों बेटे
कमलेश कुमार का संघर्ष रंग लाया। आज उनके दोनों बेटे भारतीय सेना और वायुसेना में उच्च पदों पर तैनात हैं। सत्यम भारती जहां विंग कमांडर हैं, वहीं शिवम भारती मेजर पद पर कार्यरत हैं।
उनके सहकर्मी मनोज कुमार कहते हैं, “कमलेश सर ने दधीचि की तरह तपस्या कर अपने बच्चों को बड़ा किया है। उन्होंने बच्चों को सफलता के शिखर तक पहुंचाया और खुद को भी समाज में आदर्श के रूप में स्थापित किया।”
स्थानीय निवासी डॉ. संजय कुमार ने कहा, “कमलेश सर ने जब अपनी पत्नी को खोया था, तब उनके छोटे-छोटे बच्चे थे। उस समय उन्हें कई लोगों ने दूसरी शादी का सुझाव भी दिया, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से उसे नकार दिया और अकेले बच्चों की परवरिश का निर्णय लिया। आज वे समाज के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।”
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
कमलेश कुमार की यह कहानी सिर्फ एक पिता की नहीं, बल्कि एक मजबूत इंसान की भी है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी टूटे नहीं, बल्कि और अधिक मजबूत हुए। उन्होंने यह साबित किया कि सच्चे प्यार, आत्मबल और कर्तव्य के बल पर किसी भी कठिन परिस्थिति को मात दिया जा सकता है।
आज उनका जीवन न सिर्फ उनके बेटों के लिए बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए एक आदर्श है, जो जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है। कमलेश कुमार की कहानी हमें सिखाती है कि एक पिता सच में वो तिजोरी होता है, जो अपने बच्चों के लिए कभी खाली नहीं होती।
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