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बिहार के भागलपुर जिले में बुधवार को कचहरी चौक पर झुग्गी-झोपड़ी संघर्ष समिति के बैनर तले एक उग्र विरोध प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में महादलित समाज के लोग पहुंचे, जो भीखनपुर क्षेत्र की विभिन्न बस्तियों से आए थे। रेलवे प्रशासन द्वारा जारी किए गए बेदखली नोटिस के खिलाफ उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की और सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया।

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प्रदर्शन के दौरान लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वे लगातार सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुतले का दहन किया गया। प्रदर्शनकारियों ने नेताओं पर भूमिहीनों के साथ धोखा करने और केवल चुनावी वादों तक सीमित रहने का आरोप लगाया।

प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना था कि रेलवे प्रबंधन की ओर से उन्हें नोटिस दिया गया है कि वे अपनी झुग्गियों को खाली कर दें क्योंकि वे रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से बसे हैं। इससे पहले भी सरकार की तरफ से बुलडोजर चलाकर सैकड़ों झोपड़ियों को तोड़ा जा चुका है, जिससे कई गरीब परिवार बेघर हो गए हैं। लोगों ने आरोप लगाया कि न तो कोई पुनर्वास की योजना दी गई, न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई।

गुमटी नंबर एक, दो और तीन से आए लोगों ने बताया कि वे लोग कई वर्षों से यहां बसे हुए हैं। पीढ़ियों से यहीं जीवन यापन कर रहे हैं। उनका सवाल था कि अगर सरकार अब उन्हें जबरन हटाएगी तो वे आखिर जाएं तो कहां जाएं? उनका यह भी कहना था कि जब चुनाव आता है, तो नेता जमीन देने, घर दिलाने और सम्मानजनक जीवन की बातें करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये वादे हवा में उड़ जाते हैं।

प्रदर्शन में शामिल महिला और पुरुषों ने भावुक होकर बताया कि उनके पास रहने के लिए कोई और जगह नहीं है। उनके बच्चों की पढ़ाई, परिवार की रोजी-रोटी और पूरा जीवन इन्हीं झुग्गियों में बसा है। अब अगर सरकार इन्हें उजाड़ देती है, तो उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

इस दौरान संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि अगर रेलवे प्रशासन या कोई अन्य सरकारी एजेंसी उनकी झुग्गियों को तोड़ने की कोशिश करती है, तो वे आत्मदाह करेंगे। उन्होंने साफ कहा कि अब बर्दाश्त की सीमा पार हो चुकी है। अगर सरकार ने उनकी आवाज नहीं सुनी, तो आंदोलन और तेज होगा और इसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

प्रदर्शनकारी नगर विधायक अजीत शर्मा से भी खासे नाराज दिखे। उन्होंने आरोप लगाया कि वे कई बार विधायक से मिल चुके हैं और अपनी समस्याएं रख चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला। कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि जब जनता का प्रतिनिधि ही जनता की बात नहीं सुनेगा, तो वे किससे न्याय की उम्मीद करें?

झुग्गी-झोपड़ी संघर्ष समिति के सदस्यों ने मांग की कि जब तक कोई वैकल्पिक आवास व्यवस्था या पुनर्वास की नीति नहीं लाई जाती, तब तक उन्हें उनके स्थान से हटाया न जाए। उन्होंने सरकार से यह भी मांग की कि महादलित और भूमिहीन परिवारों के लिए स्थायी आवास की व्यवस्था की जाए और उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाए।

विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे भी शामिल थे। सभी ने एक स्वर में कहा कि वे अब चुप नहीं बैठेंगे और अपने हक के लिए अंतिम सांस तक लड़ेंगे।

कुल मिलाकर, भागलपुर में बुधवार को हुआ यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ जमीन की लड़ाई नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई थी। झुग्गीवासियों ने साफ संदेश दिया कि वे अब सरकारी वादों के झांसे में नहीं आने वाले, और अगर उनकी आवाज नहीं सुनी गई तो संघर्ष और उग्र रूप लेगा।

इस प्रदर्शन से यह सवाल भी उठता है कि क्या सरकारें सिर्फ चुनाव के समय ही गरीबों की सुध लेती हैं? और क्या झुग्गियों में रहने वाले लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार नहीं होना चाहिए?

अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस आंदोलन को किस तरह संभालता है और क्या झुग्गीवासियों की मांगों पर कोई ठोस फैसला लिया जाता है या यह आंदोलन भी बाकी आंदोलनों की तरह समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा।

 

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