बिहार के भागलपुर जिले को खगड़िया से जोड़ने वाले बहुप्रतीक्षित सुल्तानगंज-अगुवानी घाट पुल का पुनर्निर्माण कार्य अब तेजी से शुरू हो गया है। दो बार गिर चुके इस पुल के पुनर्निर्माण के लिए अब एक नई रणनीति और आधुनिक तकनीकी परामर्श के साथ कार्य किया जा रहा है। पटना हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड ने इस परियोजना को नए सिरे से प्रारंभ किया है, जिसका उद्देश्य है कि इसे 18 महीनों के भीतर पूर्ण कर जनता को सौंपा जा सके।
पथ निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव मिहिर कुमार सिंह ने जानकारी दी कि परियोजना के प्रथम चरण में पुल के पहुंच पथ (एप्रोच रोड) का निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है। इसका उद्देश्य यह है कि यातायात संचालन को जल्द से जल्द शुरू किया जा सके और क्षेत्र के लोगों को आवागमन की सुविधा मिले। उन्होंने बताया कि परियोजना में उपयोग होने वाले कम्पोजिट बीम का निर्माण कार्य भी स्वीकृत कार्यशाला में प्रारंभ कर दिया गया है। यह कार्य पूरी तरह आरेखन (ड्रॉइंग) के अनुरूप हो रहा है, ताकि गुणवत्ता से कोई समझौता न हो।

इस बार पुल के डिजाइन में बदलाव किया गया है और इसे और अधिक मजबूत तथा सुरक्षित बनाया जा रहा है। आईआईटी रुड़की की ओर से प्राप्त तकनीकी सलाह के अनुसार, पुल की नींव में आवश्यक सुधार किए जा रहे हैं। यह कार्य पूरी पारदर्शिता और तकनीकी मानकों के अनुरूप किया जा रहा है, ताकि भविष्य में किसी प्रकार की दुर्घटना की पुनरावृत्ति न हो।
पुल निर्माण निगम को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि सभी कार्य समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण तरीके से पूरे किए जाएं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निगम के अधीन एक विशेष परियोजना क्रियान्वयन इकाई का गठन किया गया है। इस इकाई में अनुभवी स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स को नियुक्त किया गया है, जो तकनीकी पक्ष की लगातार निगरानी कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र टीम भी समय-समय पर स्थल निरीक्षण कर आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान कर रही है। यह टीम परियोजना की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
निर्माण कार्य की निगरानी व्यवस्था को सुदृढ़ और नियमित बनाया गया है। विभागीय आदेशानुसार, परियोजना की मासिक समीक्षा बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। साथ ही निगम के प्रबंध निदेशक प्रत्येक पखवाड़े स्थल निरीक्षण करेंगे, जिससे निर्माण कार्य की गति और गुणवत्ता की सतत निगरानी सुनिश्चित हो सके। इसके अतिरिक्त, पथ निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख (कार्य प्रबंधन) द्वारा भी मासिक आधार पर निरीक्षण और विभागीय समीक्षा की जाएगी।
गौरतलब है कि यह पुल पहले दो बार गिर चुका है—एक बार निर्माणाधीन अवस्था में और दूसरी बार लगभग पूर्णता के करीब पहुँचने के बाद। इन घटनाओं के बाद सरकार और संबंधित एजेंसियों पर गंभीर सवाल उठे थे। जनता में भारी रोष उत्पन्न हुआ और न्यायिक स्तर पर भी हस्तक्षेप हुआ। अब सरकार ने न केवल पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी को गंभीरता से लिया है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि इस बार कोई चूक न हो।
पुल के पुनर्निर्माण की पूरी राशि उसी एजेंसी द्वारा वहन की जा रही है, जिसने पहले निर्माण किया था। इससे सरकार पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ा है, लेकिन निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी सरकार द्वारा पूरी तरह निभाई जा रही है।
इस परियोजना की सफलता पर न केवल स्थानीय नागरिकों की निर्भरता है, बल्कि यह बिहार में आधारभूत संरचना विकास की विश्वसनीयता को भी दर्शाएगा। यदि समयबद्ध और गुणवत्ता-मानकों के अनुरूप यह पुल बनकर तैयार होता है, तो यह एक मिसाल बन सकता है कि किस प्रकार सरकारी परियोजनाएं पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के साथ संचालित की जा सकती हैं।
अब देखना यह है कि 18 माह के निर्धारित लक्ष्य को पुल निर्माण निगम और पथ निर्माण विभाग किस प्रकार समय पर पूरा करते हैं। जनता की निगाहें इस परियोजना पर टिकी हुई हैं, और यदि इसे सफलतापूर्वक पूरा किया जाता है तो यह न केवल एक पुल होगा, बल्कि विश्वास का सेतु भी बनेगा।
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