भागलपुर में मानवाधिकार और आरटीआई जागरूकता से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां बैंक द्वारा किए जा रहे कथित अन्याय के खिलाफ पीड़ित परिवार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आर टी आई जागरूकता संगठन भारत के प्रदेश कार्यालय में पहुँचकर न्याय की गुहार लगाई है। इस मामले ने प्रशासनिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है।
नवगछिया के निवासी माला जायसवाल और उनके पुत्र विपीन जायसवाल, जो इस मामले में पीड़ित हैं, ने भागलपुर स्थित संगठन के कार्यालय में आकर अपनी आपबीती सुनाई। पीड़ितों ने बताया कि उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया नवगछिया शाखा से व्यवसायिक कार्य के लिए ऋण लिया था। आर्थिक कठिनाइयों के चलते वे समय पर पूरा लोन चुका नहीं पाए, लेकिन उन्होंने बैंक के समक्ष ऋण सेटलमेंट का प्रस्ताव रखा और किस्तों में भुगतान जारी रखा।
माला जायसवाल का कहना है कि बैंक से समझौते की प्रक्रिया चल रही थी और इसी बीच भागलपुर के जिलाधिकारी ने मानवीय आधार पर इस परिवार को ऋण चुकाने के लिए अतिरिक्त समय देने का निर्देश भी जारी किया था। बावजूद इसके, बैंक ने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया और मानवीय दृष्टिकोण के उनके घर की नीलामी की कार्रवाई शुरू कर दी।
**पीड़िता माला जायसवाल ने कहा:**
> “हमने कभी लोन लौटाने से मना नहीं किया। हमने बैंक से निवेदन किया था कि हमें थोड़ा समय दिया जाए, ताकि हम राशि चुका सकें। जिलाधिकारी महोदय ने भी समय देने को कहा था, लेकिन बैंक मैनेजर ने हमारी एक न सुनी और हमारे घर की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी। यह हमारे साथ अन्याय है।”
इस गंभीर मुद्दे पर राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आर टी आई जागरूकता संगठन भारत के प्रदेश अध्यक्ष सह महासचिव, श्री सुमित कुमार ने भी अपना कड़ा रुख दिखाया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बैंक प्रबंधन विशेषकर ब्रांच मैनेजर श्री गौरीशंकर द्वारा परिवार के साथ किया जा रहा व्यवहार न केवल अमानवीय है, बल्कि कानूनी प्रावधानों के भी खिलाफ है।
**सुमित कुमार ने मीडिया को बताया:**
> “बैंक प्रबंधन का काम है ग्राहकों की मदद करना, न कि उन्हें डराना-धमकाना या बिना वैध प्रक्रिया के उनके घर की नीलामी करना। अगर जिलाधिकारी स्तर से भी समय बढ़ाने का निर्देश दिया गया है, तो बैंक द्वारा इस निर्देश की अवहेलना अनुचित और दंडनीय है। हम इस मुद्दे को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंचाएंगे।”
उन्होंने आगे कहा कि यह सिर्फ एक परिवार का मामला नहीं है, बल्कि ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां बैंकिंग सिस्टम की जटिलताओं और अधिकारियों की मनमानी के कारण आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संगठन का उद्देश्य ऐसे पीड़ितों को न्याय दिलाना और सिस्टम की पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
**संगठन ने की जांच और कार्रवाई की मांग**
संगठन के अन्य सदस्यों ने भी इस बात पर जोर दिया कि मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और यदि बैंक मैनेजर दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही उन्होंने भागलपुर जिलाधिकारी से आग्रह किया है कि वे पुनः हस्तक्षेप कर इस नीलामी प्रक्रिया पर रोक लगाएं और परिवार को न्याय दिलाएं।
**पीड़ितों की आर्थिक स्थिति भी चिंता का विषय**
बताया गया कि माला जायसवाल का परिवार मध्यमवर्गीय है और लॉकडाउन के दौरान उनका व्यवसाय ठप पड़ गया था। इसके चलते उनकी आय का स्रोत सीमित हो गया, जिसके कारण ऋण भुगतान में देरी हुई। इसके बावजूद वे लगातार बैंक से संपर्क में थे और भुगतान की प्रक्रिया जारी थी।
**समाप्ति**
यह मामला एक बार फिर से इस बात को उजागर करता है कि बैंकिंग सेक्टर में सुधार और मानवीय दृष्टिकोण की कितनी आवश्यकता है। जब तक बैंक और प्रशासन आम नागरिकों के साथ संवेदनशीलता से पेश नहीं आएंगे, तब तक इस प्रकार की घटनाएं सामने आती रहेंगी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संगठन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला, तो वे आंदोलन का रास्ता भी अपना सकते हैं और इस मुद्दे को राज्य स्तर से लेकर केंद्रीय मंच तक उठाएंगे। अब देखना होगा कि प्रशासन और बैंक प्रबंधन इस मामले पर क्या कार्रवाई करते हैं।
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