धर्म

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक प्रेम कहानी ने समाज और धर्म की सीमाओं को लांघते हुए एक नया इतिहास रच दिया। दिल्ली की रहने वाली शाजिया नाम की युवती ने इस्लाम धर्म को छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया और अपने प्रेमी अरुण के साथ आर्य समाज मंदिर में सात फेरे लेकर विवाह के पवित्र बंधन में बंध गई। यह विवाह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन था, बल्कि यह सामाजिक बेड़ियों और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त संदेश भी बनकर सामने आया।

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शाजिया, हसमुद्दीन की पुत्री हैं और मूल रूप से दिल्ली की निवासी हैं। उन्होंने गाजियाबाद के रहने वाले अरुण से प्रेम विवाह किया। दोनों का प्रेम कई वर्षों से चला आ रहा था, लेकिन धर्म के कारण इनके बीच एक दीवार खड़ी थी। लेकिन शाजिया ने समाज की इस दीवार को तोड़ते हुए साहसिक निर्णय लिया और प्रेम के रास्ते को चुना। शुक्रवार को बुलंदशहर के खुर्जा स्थित आर्य समाज मंदिर में दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए और साथ जीने मरने की कसमें खाईं।

शादी के बाद शाजिया ने सनातन धर्म अपनाने का विधिवत घोषणा की और अपना नया नाम भी रखा। उन्होंने कहा, “मुस्लिम समाज में महिलाओं को सिर उठाकर जीने की इजाजत नहीं है। वहां महिलाओं की स्वतंत्रता पर तरह-तरह की बंदिशें हैं। मैं हमेशा अपने मन में सवाल करती थी कि आखिर औरत को इंसान क्यों नहीं समझा जाता? लेकिन जब मैंने सनातन धर्म को जाना, तो महसूस हुआ कि यहां नारी को देवी का रूप माना जाता है। मुझे आज असली आजादी का अनुभव हो रहा है।”

इस अवसर पर विश्व हिंदू परिषद के प्रांत प्रवर्तन प्रमुख सुनील सोलंकी भी मौजूद थे। उन्होंने नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देते हुए कहा, “यह विवाह धर्मांतरण के नाम पर नहीं, बल्कि आत्मबोध और प्रेम के आधार पर हुआ है। सनातन धर्म सभी का स्वागत करता है। यहां हर व्यक्ति को समान अधिकार है। हम इस नवदंपत्ति को सुखमय जीवन की शुभकामनाएं देते हैं।”

शाजिया और अरुण की यह कहानी समाज के उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो जाति, धर्म या परंपरा के नाम पर प्रेम और आजादी का विरोध करते हैं। इस विवाह ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि प्रेम में कोई धर्म, जाति या सरहद आड़े नहीं आ सकती। यदि इरादे मजबूत हों और साथ चलने की चाह हो, तो हर दीवार गिराई जा सकती है।

हालांकि, शाजिया के इस निर्णय से कुछ कट्टरपंथी नाराज़ भी हो सकते हैं, लेकिन शाजिया ने स्पष्ट कहा कि वह अब किसी डर या दबाव में नहीं जीना चाहतीं। उन्होंने बताया कि सनातन धर्म अपनाना उनका निजी निर्णय है और अब वह पूरी तरह से एक स्वतंत्र नारी की तरह जीवन जीना चाहती हैं।

इस घटना को लेकर आसपास के लोगों में भी तरह-तरह की चर्चाएं हैं। कुछ लोग इसे प्रेम की जीत मान रहे हैं, तो कुछ इसे सामाजिक बदलाव की शुरुआत बता रहे हैं। जो भी हो, इतना तो तय है कि शाजिया और अरुण की यह प्रेम कहानी आने वाले समय में कई युवाओं को अपने जीवन के निर्णय खुद लेने की प्रेरणा देगी।

यह विवाह महज दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि सामाजिक रूढ़ियों और धार्मिक पाखंड के खिलाफ एक बोलती हुई मिसाल है।

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