सहरसा जिला अंतर्गत नवहट्टा प्रखंड के बराही गांव में स्थित प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय इन दिनों भारी अव्यवस्था और अनदेखी का शिकार बना हुआ है। सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पशु स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के उद्देश्य से खोले गए इस अस्पताल में चिकित्सक और कर्मचारी नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते हैं। हालत यह है कि पूरा अस्पताल मात्र एक वैक्सीनेटर के भरोसे चल रहा है।
**डॉक्टर नहीं, इलाज नहीं, सिर्फ नाम का अस्पताल**
बराही गांव के ग्रामीणों का कहना है कि पशु चिकित्सालय का भवन तो बना दिया गया है, लेकिन वहां चिकित्सक शायद ही कभी नजर आते हैं। जब मवेशी बीमार पड़ते हैं, तब गांव के लोग मजबूरी में निजी पशु चिकित्सकों के पास जाते हैं और इलाज के लिए बाहर से महंगे दामों पर दवाइयां खरीदते हैं।
स्थानीय निवासी राधे यादव ने बताया, *”अस्पताल तो है, लेकिन डॉक्टर साहब कभी आते ही नहीं हैं। महीनों बीत जाते हैं, लेकिन अस्पताल बंद ही मिलता है। कई बार शिकायत भी की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।”*
एक अन्य ग्रामीण रीना देवी ने कहा, *”हमारे पास मवेशी ही कमाई का जरिया हैं। अगर वे बीमार पड़ जाएं और इलाज के लिए अस्पताल में कोई डॉक्टर ही मौजूद न हो, तो हम गरीब किसान जाएं तो जाएं कहां?”*
**सिर्फ वैक्सीनेटर के भरोसे सेवा**
चौंकाने वाली बात यह है कि अस्पताल में सिर्फ एक वैक्सीनेटर ही तैनात है जो टीकाकरण और मामूली इलाज का काम देखता है। लेकिन वह भी सीमित संसाधनों के कारण सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाता। पशुओं के गंभीर बीमारियों या इमरजेंसी स्थितियों में कोई विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध नहीं होता, जिससे मवेशियों की जान तक चली जाती है।
**सरकारी दावे बनाम जमीनी हकीकत**
सरकार भले ही पशु स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के दावे करती हो, लेकिन बराही जैसे कई ग्रामीण क्षेत्रों की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। जब अस्पताल में डॉक्टर और स्टाफ ही नहीं रहेंगे, तो करोड़ों की योजनाएं और भवन किस काम के?
ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि अगर डॉक्टर अपनी ड्यूटी पर नहीं आते हैं तो उन्हें तुरंत निलंबित या बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता? गांव वालों का साफ कहना है कि यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि ग्रामीण गरीबों के साथ अन्याय है।
**पशुपालन विभाग की सफाई**
इस पूरे मामले पर जब जिला पशुपालन पदाधिकारी कुमोद कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि *”बराही पशु चिकित्सालय के संबंधित डॉक्टर पर पूर्व में एक सप्ताह का वेतन रोका गया था। अब आगे स्थल निरीक्षण किया जाएगा और दोषी पाए जाने पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।”*
हालांकि अधिकारी के इस बयान से ग्रामीण संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि कार्रवाई की बात तो वर्षों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं।
**ग्रामीणों की मांग: जिम्मेदारों को किया जाए बर्खास्त**
इस अस्पताल से जुड़ी लापरवाही और अनदेखी से नाराज ग्रामीणों ने मांग की है कि इस अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सक और अन्य अनुपस्थित कर्मचारी को तुरंत बर्खास्त किया जाए। साथ ही, यहां एक स्थायी और जिम्मेदार डॉक्टर की नियुक्ति की जाए जो नियमित रूप से अस्पताल में उपस्थित रहे और मवेशियों का समय पर इलाज करे।
**निष्कर्ष**
बराही पशु चिकित्सालय की स्थिति इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि सिर्फ योजनाएं और भवन बनवा देने से ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत नहीं होती। जब तक कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाएगी और लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ग्रामीणों को इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
ग्रामीणों की उम्मीद अब सरकार और विभागीय अधिकारियों से है कि वे जल्द से जल्द इस मामले को संज्ञान में लेकर आवश्यक कदम उठाएं, ताकि गांव के मवेशियों को समय पर इलाज और देखभाल मिल सके। क्योंकि पशुधन ही किसानों की असली संपत्ति होती है।
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