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सहरसा, बिहार – सहरसा का सदर अस्पताल एक बार फिर चर्चाओं में है। लगातार मिल रही शिकायतों और बदइंतजामी की खबरों के बीच जिले के नए जिलाधिकारी दीपेंद्र कुमार ने गुरुवार को अस्पताल का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने अस्पताल की सफाई व्यवस्था, डॉक्टरों व कर्मचारियों की उपस्थिति, दवाओं की उपलब्धता, तथा आपातकालीन सुविधाओं की स्थिति का बारीकी से जायजा लिया।

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जिलाधिकारी ने निरीक्षण के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह एक “नियमित प्रक्रिया” के तहत की गई जांच थी। उन्होंने स्वीकार किया कि अस्पताल में सफाई व्यवस्था संतोषजनक नहीं है और इस दिशा में तत्काल सुधार के निर्देश अस्पताल प्रबंधन को दे दिए गए हैं। डीएम ने भरोसा दिलाया कि आने वाले दिनों में स्थिति में सुधार दिखेगा।

हालांकि निरीक्षण के दौरान पत्रकारों ने जब अस्पताल में इस्तेमाल हो रही गंदी, सतरंगी चादरों, मरीजों की अनदेखी और वार्डों की बदहाल स्थिति की ओर ध्यान दिलाया, तो जिलाधिकारी ने अस्पताल अधीक्षक की ओर देखा और कहा, “इस पर तत्काल सुधार की आवश्यकता है।” डीएम ने यह भी जोड़ा कि कुछ कमियों के अलावा बाकी व्यवस्था अपेक्षाकृत ठीक पाई गई।

लेकिन यहीं पर सवाल खड़े होते हैं। जब भी कोई वरिष्ठ अधिकारी, विशेषकर डीएम या स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारी निरीक्षण करने आते हैं, उस समय अस्पताल व्यवस्थित क्यों दिखाई देता है? वहीं, आम दिनों में आम मरीजों को इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। हाल ही की एक घटना में 112 आपातकालीन सेवा से लाए गए मरीज को समय पर प्राथमिक उपचार तक नहीं मिला। यह सवाल उठाता है कि क्या यह व्यवस्था केवल ‘दिखावे’ के लिए सुधारी जाती है?

स्थानीय नागरिकों और मरीजों के परिजनों का कहना है कि निरीक्षण की खबर मिलते ही अस्पताल का चेहरा बदल दिया जाता है। कर्मचारी समय पर आ जाते हैं, डॉक्टर अपने कक्षों में मिलते हैं और सफाई कर्मचारी अस्थायी रूप से हर जगह झाड़ू लगाते दिखते हैं। पर जैसे ही निरीक्षण खत्म होता है, पुरानी स्थिति लौट आती है।

यह पहली बार नहीं है जब सदर अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठे हों। इससे पहले पूर्व जिलाधिकारी वैभव चौधरी ने भी औचक निरीक्षण किया था। उस समय भी अस्पताल कुछ दिनों तक ठीक चला, लेकिन समय के साथ वही पुराने हालात लौट आए। साफ-सफाई से लेकर दवाइयों की अनुपलब्धता और डॉक्टरों की गैरहाजिरी तक, समस्याएं जस की तस बनी रहीं।

डीएम दीपेंद्र कुमार के इस निरीक्षण से एक बार फिर उम्मीद की किरण जगी है, लेकिन जनता का विश्वास तभी बहाल हो पाएगा जब धरातल पर स्थायी सुधार देखने को मिलेंगे। केवल निरीक्षण और निर्देशों से नहीं, बल्कि जवाबदेही तय कर, नियमित निगरानी और पारदर्शिता लाकर ही अस्पताल की बदहाल व्यवस्था को बदला जा सकता है।

अब देखना यह होगा कि नए डीएम की यह सक्रियता केवल औपचारिकता तक सीमित रहती है या वास्तव में अस्पताल की दशा-दिशा बदलने का जरिया बनती है। सहरसा की जनता अब सिर्फ वादे नहीं, असरदार बदलाव देखना चाहती है – वो भी सिर्फ निरीक्षण वाले दिन नहीं, हर दिन।

 

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