भागलपुर जिले के सुल्तानगंज प्रखंड अंतर्गत महेशी पंचायत के कल्याणपुर गांव में जमीन विवाद को लेकर शनिवार को बड़ा बवाल देखने को मिला। यह मामला तब गरमा गया जब बाढ़ प्रभावित 70 पर्चा धारक परिवार वर्षों से सरकार द्वारा मिली जमीन पर अपना हक जताने पहुंचे। इन लोगों का आरोप है कि उन्हें सरकारी जमीन का पर्चा कई साल पहले मिला था, लेकिन आज तक अंचल कार्यालय और प्रशासनिक उदासीनता के कारण वे उस जमीन पर घर नहीं बसा पाए।

पर्चा धारकों का कहना है कि वे कई वर्षों से अंचल कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। शनिवार को जब ये परिवार एकजुट होकर अपने-अपने पर्चे के अनुसार जमीन पर पहुंचे, तो वहां पहले से मौजूद शंकर चौधरी के परिवार वालों ने उनका विरोध किया। देखते ही देखते दोनों पक्षों के बीच कहासुनी झड़प में बदल गई और लाठी-डंडे चलने लगे। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि कई लोग मामूली रूप से घायल हो गए।
घटना की जानकारी मिलते ही सुल्तानगंज अंचलाधिकारी रवि कुमार और थानाध्यक्ष मृत्युंजय कुमार दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे और बीच-बचाव कर माहौल को शांत किया। प्रशासन ने दोनों पक्षों को तत्काल जमीन से हटाते हुए सोमवार को एसडीओ कार्यालय में बुलाया है, जहां इस मामले की निष्पक्ष सुनवाई और जमीन के निष्पादन की प्रक्रिया की जाएगी।
**अंचलाधिकारी रवि कुमार** ने कहा कि, *“यह संवेदनशील मामला है। दोनों पक्षों की बातों को ध्यान से सुना जाएगा और पर्चा के दस्तावेजों के आधार पर निष्पादन किया जाएगा। किसी को भी उसका कानूनी अधिकार छीना नहीं जाएगा, और यदि किसी ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी।”*
वहीं, **पर्चा धारक अर्जुन मंडल** ने कहा, *“हम लोगों को पर्चा मिले 10 साल हो गए, लेकिन आज तक जमीन नहीं मिली। अब जब हम खुद पहल कर रहे हैं तो जमींदार और उनके लोग हमें धमका रहे हैं और मारपीट कर रहे हैं। हम सरकार से न्याय की मांग करते हैं।”*
वहीं दूसरी ओर, **शंकर चौधरी के पुत्र विकास चौधरी** ने सफाई देते हुए कहा, *“हम लोग इस जमीन को वर्षों से जोत-कोर रहे हैं। अचानक कुछ लोग आकर कब्जा करना चाह रहे थे, इसलिए थोड़ी कहासुनी हुई। अगर प्रशासन कहेगा तो हम कागजात दिखाने को तैयार हैं।”*
अब सभी की नजरें सोमवार को एसडीओ कार्यालय में होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि 70 बाढ़ प्रभावित परिवारों को आखिरकार उनकी जमीन पर अधिकार मिलेगा या नहीं।
यह मामला न सिर्फ सरकारी व्यवस्था की निष्क्रियता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे आज भी गरीब और विस्थापित लोग अपने हक के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं।
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