भागलपुर जिले के गोपालपुर प्रखंड अंतर्गत रंगरा चौक क्षेत्र के छह गांव—ज्ञानीदास टोला, झल्लूदास टोला, उसरहिया, नवटोलिया, सिमरिया और कुतरू दास टोला—गंगा नदी के तीव्र कटाव की चपेट में हैं। लगभग 50 हजार की आबादी वाले इन गांवों के सामने विस्थापन का संकट गहराता जा रहा है। बीते दो से तीन वर्षों में कटाव की विभीषिका इतनी विकराल हो गई है कि ज्ञानीदास टोला के लगभग 500 घर गंगा में समा चुके हैं। इससे कई परिवारों को पलायन करना पड़ा है, जबकि कुछ लोग बेहद विषम परिस्थितियों में अपने गांव के पास ही शरण लिए हुए हैं।
गंगा का कहर, जीवन की त्रासदी
गांव के कई विस्थापित परिवार अब गोपालपुर की विनोबा उमावि के प्रांगण में प्लास्टिक की चादरों के नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। इनके पास न तो समुचित भोजन है, न पीने का साफ पानी, और न ही शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं। बरसात के मौसम में स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। महिलाएं और बच्चे खासकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

ग्रामीणों में भय का माहौल
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस वर्ष गंगा नदी गांव के पूर्वी हिस्से में तेजी से कटाव कर रही है। यह भाग अब तक सुरक्षात्मक कार्यों से अछूता है, जिससे सिमरिया और तिनटंगा उत्तरी पंचायत के लोग अत्यधिक भयभीत हैं। तिनटंगा उत्तरी पंचायत में कई घरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते विभाग ने पूर्वी भाग में कटाव रोधी कार्य नहीं करवाया, तो कई और गांव गंगा में समा सकते हैं।
विभागीय प्रयास: आश्वासन तो है, लेकिन भरोसा नहीं
नवगछिया बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल की ओर से दावा किया गया है कि इस वर्ष 250 लाख रुपये की लागत से कटाव निरोधी कार्य कराया जा रहा है। यह कार्य अंतिम चरण में है। विभाग का कहना है कि बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने पर ‘फ्लड फाइटिंग’ यानी बाढ़ संघर्षात्मक उपायों को लागू किया जाएगा। लेकिन यह कार्य मुख्यतः उन हिस्सों में किया जा रहा है, जो पिछले वर्ष क्षतिग्रस्त हुए थे। पूर्वी भाग, जहां इस वर्ष कटाव सबसे अधिक है, को अब तक उपेक्षित रखा गया है।
राजनीतिक व प्रशासनिक चुप्पी
इस संकट को लेकर अब तक न तो किसी जनप्रतिनिधि ने स्थिति का स्थलीय निरीक्षण किया है और न ही प्रशासन की ओर से कोई ठोस पुनर्वास योजना बनाई गई है। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल कटाव के समय अधिकारियों की टीम आती है, तस्वीरें खिंचवाती है और आश्वासन देकर चली जाती है। लेकिन जमीन पर कोई स्थायी समाधान नहीं होता।
बच्चों की शिक्षा पर असर
कटाव और पलायन का असर गांवों के बच्चों की शिक्षा पर भी पड़ रहा है। विस्थापित परिवारों के बच्चे अब स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। जो लोग विनोबा उमावि के परिसर में रह रहे हैं, उनके कारण स्कूल का संचालन भी प्रभावित हो रहा है। इससे छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।
समाधान की उम्मीद
ग्रामीणों की मांग है कि सरकार को यहां तत्काल स्थायी तटबंध का निर्माण करना चाहिए, ताकि भविष्य में कटाव को रोका जा सके। इसके अलावा विस्थापित परिवारों के लिए पुनर्वास की ठोस व्यवस्था, मुआवजा और राहत शिविर की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। जब तक बुनियादी संरचना नहीं बनाई जाती, हर साल यही त्रासदी दोहराई जाती रहेगी।
निष्कर्ष
गंगा नदी का कटाव अब केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बन चुका है। गोपालपुर क्षेत्र के ये छह गांव इस समय अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल हजारों परिवार उजड़ जाएंगे, बल्कि सरकार और प्रशासन की विफलता की एक और कहानी गंगा किनारे दर्ज हो जाएगी।
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