हर साल 5 अक्टूबर को डॉल्फिन दिवस मनाया जाता है — वह दिन जो हमें याद दिलाता है कि गंगा नदी की आत्मा उसकी डॉल्फिन है। गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है, और इसका सबसे बड़ा घर है बिहार की नदियाँ। देश की कुल गंगा डॉल्फिन आबादी का करीब 35 प्रतिशत हिस्सा बिहार में निवास करता है। लेकिन जहाँ एक ओर यह गर्व की बात है, वहीं दूसरी ओर यह चिंता का विषय भी है कि डॉल्फिन संरक्षण के नाम पर बना देश का एकमात्र नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (NDRC), पटना अब तक पूरी तरह कार्यात्मक नहीं हो सका है।

बिहार — गंगा डॉल्फिनों का गढ़

बिहार डॉल्फिनों के लिए एक प्राकृतिक स्वर्ग है। गंगा और उसकी सहायक नदियाँ — गंडक, कोसी, सोन, घाघरा, महानंदा, कमला-बलान और बागमती — इस दुर्लभ प्रजाति के जीवन और प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करती हैं।
हाल के सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि भागलपुर के सुल्तानगंज क्षेत्र में सबसे अधिक 220 डॉल्फिनें पाई गई हैं, जबकि पटना के हाथीदह क्षेत्र में इनकी संख्या 100 से अधिक है। इन दोनों इलाकों को अब डॉल्फिन हॉटस्पॉट कहा जाता है।

विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभयारण्य, जो गंगा नदी के भागलपुर क्षेत्र में स्थित है, पूरे देश में सबसे अधिक डॉल्फिनों वाला संरक्षित क्षेत्र है। यहाँ डॉल्फिनों की संख्या लगातार बढ़ रही है — 2022 में यहाँ 210 से अधिक डॉल्फिनें दर्ज की गई थीं।

देशभर में 6327 डॉल्फिनें, बिहार में अकेले 2220

केंद्र सरकार के राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश के 8 राज्यों — उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब — की 28 नदियों में कुल 6327 डॉल्फिनें मौजूद हैं।
इनमें से अकेले बिहार में 2220 डॉल्फिनें हैं। यानी, गंगा की हर तीसरी डॉल्फिन बिहार की किसी नदी में सांस लेती है।

गंगा डॉल्फिन — गंगा की सांस और स्वच्छता की पहचान

बिहार के डॉल्फिन मैन कहे जाने वाले डॉ. आर.के. सिन्हा बताते हैं कि गंगा डॉल्फिन का वैज्ञानिक नाम *Platanista gangetica gangetica* है। यह मछली नहीं, बल्कि एक जलीय स्तनधारी (Aquatic Mammal) है।
यह पूरी तरह दृष्टिहीन होती है और दिशा पहचानने के लिए इको लोकेशन यानी ध्वनि तरंगों का प्रयोग करती है। यह एक मांसाहारी जीव है जो छोटी मछलियों का शिकार करती है।

डॉ. सिन्हा कहते हैं,

> “गंगा डॉल्फिन को हर 30 से 40 सेकंड में ऊपर आकर सांस लेना पड़ता है, इसलिए इसे ‘गंगा की सांस’ कहा जाता है। औसतन इसकी लंबाई 2 से 2.5 मीटर और वजन 80 से 90 किलोग्राम तक होता है।”

गंगा डॉल्फिन सिर्फ नदी की सुंदरता नहीं, बल्कि उसकी जीवित प्रयोगशाला (Living Lab) है। जहां डॉल्फिन दिखती है, वहां यह माना जाता है कि नदी अब भी जीवंत और स्वच्छ है।

गंगा में बढ़ रही हैं डॉल्फिनें — स्वच्छता का संकेत

रिटायर्ड आईपीएस और पर्यावरणविद् प्रांतोष कुमार दास के अनुसार, बिहार में गंगा डॉल्फिनों की संख्या बीते कुछ वर्षों में बढ़ी है। खासकर कहलगांव से सुल्तानगंज के बीच डॉल्फिनों की उपस्थिति पहले से अधिक हो गई है।
उनके मुताबिक,

> “डॉल्फिन की संख्या में यह बढ़ोतरी बताती है कि गंगा का जल पहले से स्वच्छ हुआ है। डॉल्फिन नदी की सेहत बताने वाली जीवित सूचक है। जहां डॉल्फिन दिखती है, वहां यह मान लेना चाहिए कि गंगा अब भी जिंदा है।”

हालांकि वे यह भी चेतावनी देते हैं कि पटना के गांधी घाट क्षेत्र में अब डॉल्फिनें बहुत कम दिखाई देती हैं क्योंकि नालों का गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के गंगा में गिर रहा है। यही कारण है कि डॉल्फिनें हाथीदह क्षेत्र की ओर शिफ्ट हो गई हैं।

नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर — उद्घाटन हुआ, पर काम ठप

डॉल्फिन संरक्षण और वैज्ञानिक अध्ययन के लिए देश में पहला और एशिया का एकमात्र संस्थान नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (NDRC), पटना विश्वविद्यालय परिसर में बनाया गया है। करीब ₹30 करोड़ की लागत से निर्मित यह केंद्र 4 मार्च 2024 को उद्घाटित किया गया था।

यह केंद्र गंगा डॉल्फिन की पारिस्थितिकी, प्रजनन, प्रदूषण स्तर और प्रवाह पैटर्न पर शोध करने के लिए स्थापित किया गया, लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह पूरी तरह गैर-कार्यात्मक बना हुआ है।
यहाँ 46 पदों का प्रावधान तो है, लेकिन अभी तक न वैज्ञानिकों की नियुक्ति हुई है, न तकनीकी स्टाफ की। आधुनिक उपकरण और जल अध्ययन प्रयोगशाला की कमी से अनुसंधान कार्य पूरी तरह ठप है।

वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव आनंद किशोर ने बताया कि

> “केंद्र में जल्द सक्रिय शोध कार्य शुरू होंगे। 47 पदों की भर्ती प्रस्तावित है और प्रक्रिया जारी है। हर साल कम से कम 8 शोध परियोजनाएँ चलाई जाएँगी। सरकार का लक्ष्य है कि NDRC को एशिया का प्रमुख ‘रिवर इकोलॉजी मॉडल संस्थान’ बनाया जाए।”

संरक्षण के प्रयास — डॉल्फिन मित्रों की बड़ी भूमिका

बिहार में डॉल्फिनों की रक्षा के लिए “डॉल्फिन मित्र कार्यक्रम” चलाया जा रहा है। इसके तहत मछुआरों, नाविकों और स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें डॉल्फिन के प्रहरी बनाया जा रहा है। ये लोग नदी में डॉल्फिनों की गतिविधियों और उनके आवास की निगरानी करते हैं।

इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ की शुरुआत की है, जिसके तहत नदी में शोर और नाव यातायात पर नियंत्रण, मछली पकड़ने वाले जालों की निगरानी, और जल गुणवत्ता सुधार पर फोकस किया जा रहा है।

खतरे अब भी बरकरार

गंगा डॉल्फिन कई चुनौतियों का सामना कर रही है।

औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू गंदगी गंगा में बिना शुद्धिकरण के गिर रही है, जिससे इनका आवास प्रदूषित हो रहा है।
बांधों और बैराजों ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया है, जिससे डॉल्फिनों के बीच आवाजाही रुक गई है।
मछली पकड़ने के जालों में फँसकर हर साल कई डॉल्फिनें मर जाती हैं।
नावों के शोर और प्रोपेलर के ब्लेड** इनके इको लोकेशन सिस्टम को प्रभावित करते हैं, जिससे वे दिशा खो बैठती हैं।

डॉ. आर. के. सिन्हा बताते हैं कि डॉल्फिन सिर्फ 5 से 8 फीट गहराई वाले पानी में जीवित रह सकती है। यदि जल स्तर बहुत बढ़ जाए, तो यह डूबकर मर जाती है। इसलिए जल प्रवाह और प्रदूषण नियंत्रण दोनों जरूरी हैं।

गंगा की आत्मा है डॉल्फिन

डॉल्फिन सिर्फ एक जीव नहीं, बल्कि गंगा की आत्मा है। जब यह नदी से गायब होती है, तो समझिए कि गंगा बीमार है। डॉल्फिन दिवस हमें यह संदेश देता है कि गंगा बचेगी तभी डॉल्फिन बचेगी, और डॉल्फिन बचेगी तभी गंगा जिंदा रहेगी।”

पर्यावरणविदों का कहना है कि गंगा की स्वच्छता और डॉल्फिन का अस्तित्व एक-दूसरे से जुड़े हैं।

> “अगर हम गंगा को साफ, प्रवाहमान और प्रदूषण मुक्त रखेंगे, तो डॉल्फिन अपने आप लौट आएगी,”
> कहते हैं डॉ. आर.के. सिन्हा।

निष्कर्ष: जागरूकता ही असली संरक्षण

डॉल्फिन दिवस का असली उद्देश्य केवल उत्सव नहीं, बल्कि जागरूकता है।
गंगा में बढ़ता प्रदूषण, अवैध मछली पकड़ना और नदी का घटता प्रवाह — ये सब इस जीव के अस्तित्व के लिए खतरा हैं। लेकिन अगर सरकार, समाज और वैज्ञानिक समुदाय मिलकर काम करें, तो गंगा डॉल्फिन फिर से अपनी पूरी आबादी के साथ लौट सकती है।

बिहार के लोगों के लिए यह केवल गौरव की नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की बात है। गंगा की हर लहर में डॉल्फिन की सांस बसती है —
और जब तक उसकी सांस चलती रहेगी, गंगा की मुस्कुराहट भी कायम रहेगी।

By admin

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