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पटना सिटी सिविल कोर्ट परिसर में शुक्रवार को उस समय अफरातफरी मच गई जब तीन कुख्यात अपराधियों ने खुद को अधिवक्ता संघ के नए भवन में स्थित एक अधिवक्ता के कमरे में बंद कर लिया। सुबह के समय अदालत परिसर में अचानक उत्पन्न हुई इस अप्रत्याशित स्थिति ने वहां मौजूद वकीलों, सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों के बीच हड़कंप मचा दिया। जैसे ही यह सूचना फैली कि तीन अपराधी कोर्ट परिसर के भीतर एक कमरे में छिपे हुए हैं, पूरा माहौल तनावपूर्ण हो गया और सुरक्षा व्यवस्था को तत्काल सक्रिय किया गया।

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प्राप्त जानकारी के अनुसार, ये तीनों आरोपी खुसरूपुर थाना क्षेत्र के हसनपुर गांव में हुए एक जमीन विवाद से जुड़े हुए हैं। उक्त विवाद में दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी भी हुई थी और स्थानीय लोगों ने सड़क पर उतरकर जमकर विरोध-प्रदर्शन किया था। पुलिस द्वारा की जा रही जांच में इन तीनों की संलिप्तता सामने आई थी और इनके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट भी जारी किए गए थे। बताया जा रहा है कि किसी अधिवक्ता की सलाह पर ये तीनों आरोपी कोर्ट में आत्मसमर्पण के लिए पहुंचे थे ताकि अग्रिम जमानत प्राप्त की जा सके। हालांकि शुक्रवार को मॉर्निंग कोर्ट की प्रक्रिया के कारण इनकी बेल बॉन्ड की कार्यवाही पूरी नहीं हो पाई, जिसके चलते वे अदालत में विधिवत आत्मसमर्पण नहीं कर सके।

बेल प्रक्रिया में अड़चन आने के बाद तीनों आरोपियों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अधिवक्ता संघ के नए भवन के एक कमरे में खुद को बंद कर लिया। जब अधिवक्ता संघ के कुछ सदस्यों ने संदिग्ध गतिविधियां नोट कीं और खिड़की से किसी को झांकते हुए देखा, तब शक गहराया और मामले की सूचना पुलिस को दी गई। आनन-फानन में खुसरूपुर थाना एवं आलमगंज थाना की पुलिस टीमें कोर्ट परिसर पहुंचीं और आरोपियों को बाहर निकालने की कवायद शुरू हुई।

हालांकि तीनों आरोपी किसी भी सूरत में बाहर आने को तैयार नहीं थे। पुलिस के बार-बार समझाने और दरवाजा खटखटाने के बावजूद जब वे दरवाजा नहीं खोल रहे थे, तब पुलिस को मजबूरी में उस कमरे का ताला तोड़ना पड़ा। देर रात तक चली इस कार्रवाई के बाद आखिरकार तीनों आरोपियों को कमरे से बाहर निकाला गया।

पुलिस के अनुसार, गिरफ्तारी वारंट होने के बावजूद आरोपियों को कोर्ट परिसर में तत्काल गिरफ्तार नहीं किया जा सका, क्योंकि वहां ऐसा करने के लिए विधिक अनुमति की आवश्यकता होती है। इसी कारण पुलिस ने तीनों को हिरासत में लेकर कोर्ट परिसर में ही बैठाए रखा और कानूनी प्रक्रिया पूरी की। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था भी सख्त कर दी गई थी ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे।

इस पूरे घटनाक्रम पर अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष संजय कुमार सिन्हा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि संबंधित अधिवक्ता, जिनके कमरे में आरोपी छिपे थे, से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। उन्होंने कहा कि यह गंभीर मामला है और अधिवक्ता संघ इसे हल्के में नहीं लेगा। दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिवक्ता पर आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। संजय कुमार सिन्हा ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिवक्ता संघ का कोई भी सदस्य कानून से ऊपर नहीं है और न्यायिक प्रक्रिया का पालन हर किसी के लिए अनिवार्य है।

वहीं, मामले की जांच कर रहे एएसपी ने बताया कि पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया और तीनों आरोपियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। उन्होंने बताया कि आगे की कानूनी प्रक्रिया चल रही है और जल्द ही आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, कोर्ट परिसर की सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त करने पर भी विचार किया जा रहा है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

पटना सिटी सिविल कोर्ट परिसर में हुई यह घटना न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अपराधी अब आत्मसमर्पण की प्रक्रिया में भी कानून का लाभ उठाकर अपने बचाव के रास्ते ढूंढ रहे हैं। अधिवक्ता संघ, पुलिस प्रशासन और न्यायिक अधिकारियों को मिलकर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए समन्वित प्रयास करने होंगे। कोर्ट जैसी संवेदनशील जगह पर यदि अपराधी आसानी से छिप सकते हैं, तो यह आम जनता की सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।

इस पूरे मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कानून व्यवस्था की कमियों का लाभ उठाकर अपराधी पुलिस और अदालत दोनों को चकमा देने की फिराक में रहते हैं। परंतु यह भी स्पष्ट है कि ऐसे प्रयास ज्यादा देर तक सफल नहीं हो सकते, क्योंकि कानून का शिकंजा अंततः कस ही जाता है। पटना सिटी की यह घटना प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि सुरक्षा व्यवस्था को और बेहतर और चुस्त-दुरुस्त बनाने की सख्त जरूरत है।

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