पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही एनडीए और महागठबंधन दोनों में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान तेज हो गई है। वर्तमान समय में न तो एनडीए और न ही महागठबंधन में सीट बंटवारे पर अंतिम सहमति बनी है। दोनों गठबंधन लगातार बैठकें कर रहे हैं, लेकिन कई सीटों पर पेंच फंसा हुआ है। दिल्ली में एनडीए की सर्वदलीय बैठक 8 अक्टूबर को संभावित है, जबकि महागठबंधन में भी सीटों पर सहमति बनना अभी बाकी है।

छोटे घटक दल जल्द ही सीटों की घोषणा चाहते हैं ताकि उम्मीदवार समय रहते चुनाव प्रचार में लग जाएँ। लेकिन अधिक संख्या में सीटों की मांग और कई सीटों पर दावेदारी के कारण बंटवारा अभी तक तय नहीं हो पाया है।

एनडीए में पांच दल

एनडीए की बात करें तो 2020 में इसमें केवल चार दल थे, लेकिन इस बार गठबंधन में पाँच दल शामिल हैं।

भाजपा और जदयू प्रमुख दल हैं।
जीतनराम मांझी की पार्टी **हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा** भी इसमें शामिल है।
इसके अलावा चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा नए सहयोगी हैं।

इन पांच दलों में सीटों का बंटवारा होना है। हालांकि जदयू और भाजपा में बहुत ज्यादा पेंच नहीं है, लेकिन जीतनराम मांझी लगातार 20 सीटों की मांग कर रहे हैं। चिराग पासवान भी सम्मानजनक समझौते की मांग कर रहे हैं, और उनके लिए 43 सीटों तक की दावेदारी बताई जा रही है। उपेंद्र कुशवाहा अभी चुप हैं, लेकिन वह भी सम्मानजनक सीट चाहते हैं।

एनडीए की रणनीति स्पष्ट है कि प्रधान दल (बीजेपी-जदयू) अधिकांश सीटें अपने पास रखते हुए छोटे घटक दलों को संतुष्ट करेंगे।

महागठबंधन में आठ दल

महागठबंधन में इस बार कुल आठ दल हैं।

प्रमुख दल: आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआईएम, सीपीआई माले, विकासशील इंसान पार्टी।
नए दल: झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी।

महागठबंधन में भी सीटों पर पेंच फंसा हुआ है। आरजेडी और कांग्रेस बड़ी संख्या में सीटें अपने पास रखना चाहते हैं।

आरजेडी और कांग्रेस 210-215 सीटें अपने पास रखना चाहती हैं।
वामपंथी दल, माले और सीपीआई भी पिछली बार के प्रदर्शन के आधार पर अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं।

विशेष रूप से, मुकेश सहनी महागठबंधन में 60 सीटों के साथ डिप्टी सीएम की मांग कर रहे हैं।
तेजस्वी यादव के लिए यह एक बड़ा चैलेंज है क्योंकि घटक दलों की मांगें पूरी करना जरूरी है और गठबंधन में दरार नहीं पड़नी चाहिए।

प्रमुख सीटों की दावेदारी और विवाद

दोनों गठबंधन में सीटों को लेकर सबसे बड़ा विवाद जीतने वाली सीटों को लेकर है।

एनडीए में जदयू और भाजपा अधिकांश जीतने वाली सीटें अपने पास रखना चाहती हैं।
महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस भी यही रणनीति अपना रही हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ के अनुसार,

> “सभी दल चाहते हैं कि उन्हें जीतने वाली सीट मिले। कांग्रेस पिछली बार केवल 19 सीटें जीत पाई थी, इसलिए इस बार वह हर हाल में जीतने योग्य सीटों पर फोकस कर रही है।”

छोटे दलों की दावेदारी भी जटिलता बढ़ा रही है। एनडीए में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी की मांगें गठबंधन के लिए चुनौती हैं। महागठबंधन में वामपंथी दलों की सीटों की मांग तेजस्वी यादव के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।

एनडीए में स्थिति

एनडीए में जदयू और भाजपा के बीच तालमेल ठीक माना जा रहा है। जेडीयू प्रवक्ता अरविंद निषाद का कहना है कि,

> “सीट बंटवारे में कहीं कोई समस्या नहीं है। धर्मेंद्र प्रधान सभी घटक दलों से मिल चुके हैं और जल्द ही सहूलियत के हिसाब से ऐलान हो जाएगा। असली झंझट महागठबंधन में है।”

लोजपा रामविलास भी दिल्ली में सर्वदलीय बैठक के बाद सीटों का बंटवारा सुनिश्चित करेगी। लोजपा का दावा है कि शाहाबाद, मगध, कोसी और तिरहुत के इलाकों में उनकी मजबूत पकड़ है, इसलिए अधिक से अधिक सीटें उन्हें मिलें।

महागठबंधन में चुनौती

महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर सबसे बड़ा पेंच है।

आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव के नेतृत्व में गठबंधन में समन्वय बनाए रखना चाहती है।
कांग्रेस इस बार अपनी सीटों पर कड़ाई से दबाव बना रही है।
वामपंथी दल पिछली बार के प्रदर्शन के आधार पर अधिक सीटें चाहते हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे कहते हैं,

> “सेट बंटवारा हमेशा गठबंधन के लिए चुनौती रहा है। छोटे दल और नए घटक दल अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। तेजस्वी यादव के लिए इसे सुलझाना सबसे बड़ा चैलेंज है।”

महागठबंधन में कई सीटिंग विधायक बागी हो चुके हैं, जिन्हें टिकट देना भी चुनौती बन गई है।

लोकसभा चुनाव के आधार पर रणनीति

2020 विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव के आधार पर टिकट वितरण की रणनीति तैयार की जा रही है।

एनडीए ने 173 विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाई थी।
महागठबंधन को 63 सीटों में बढ़त मिली थी।

आरजेडी की तरफ से 50 सीटों पर उम्मीदवार तय किए जा चुके हैं और उन्हें चुनाव प्रचार में लगने का निर्देश दिया गया है। कांग्रेस भी सीटिंग विधायकों को चुनाव प्रचार में लगा रही है।

एनडीए में जदयू और भाजपा ने अधिकांश सीटों पर फैसला कर लिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 500 से अधिक नेताओं से मिलकर फीडबैक लिया। भाजपा ने 125 सीटों पर 600 से अधिक नामों का चयन किया है। अधिकांश सिटिंग विधायक एक बार फिर चुनाव लड़ेंगे।

निष्कर्ष

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सीट बंटवारा एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

एनडीए में मुख्य मुद्दा छोटे दलों की मांग और नए घटक दलों की दावेदारी है।
महागठबंधन में मुख्य मुद्दा आरजेडी और कांग्रेस के बीच संतुलन बनाए रखना है।

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों गठबंधन को सभी दलों की मांग और जीतने योग्य सीटों का संतुलन बनाए रखना होगा। अगर यह संतुलन नहीं बना तो गठबंधन में दरार पड़ने की संभावना है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस सीट बंटवारे की जटिलता और घटक दलों की दावेदारी निर्णायक साबित हो सकती है। यह देखने वाली बात होगी कि एनडीए और महागठबंधन किस तरह अपने अंदर की चुनौती को सुलझाते हैं और 243 सीटों पर अपना प्रभुत्व बनाए रखते हैं।

 

By admin

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